________________
जे माणस दानमां सोनानो मेरु आपी ये अने आखी पृथ्वीनुं दान करी घे तेनुं जे पुण्य थाय अने जे माणस मांस भक्षण न करे तेनुं जे पुण्य थाय तो हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खवानुं पुण्य चडी जाय. १७
सोनानुं दान, गामनुं दान अने भूमिर्नु दान ए बधां दानजे पुण्य थाय अने मांस न खावानुं जे पुण्य थाय ते हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय. १८
[पृ०६०] एक एक महिने हजार हजार कपिला गायो, दान देवाथी जे पुण्य थाय अने मांस नहीं खानारने जे पुण्य थाय ते ए बे सरखां नथी पण हे युधिष्ठिर ! मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय. १९ - आं प्रमाणे लौकिक शास्त्रोमां पण महाविषनी पेठे मांसभक्षणने तजी देवानुं ज जणावेल छे तो पछी आ हकीकत लोकोत्तर शास्त्रमा तो होय ज ने ? २०
. मद्यनुं पान अने मांस, भक्षण बहुदोषवाळु छे माटे ते बन्नेनो त्याग करवो जरूरी छे तेमज रात्रीभोजन पण बहुदोषवाळु होवाने लीधे ज डाह्या माणसोओ तजी देवा जेवू छे. २१
जो कदाच अन्न प्रासुक-जीवजंतुरहित होय, फासु-निर्दोष होय तो पण तेमां रहेला कंथवा अने फूगनां जंतुओ जोई शकातां नथीजोवा कठण छे माटे जेओ प्रत्यक्षज्ञानी-अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी अने केवलज्ञानी छे तेओ रात्रीभोजननो त्याग ज करे छे. २२
जो के रात्रीए कीडी वगेरे जंतुओ दीवाना प्रकाशथी जोई शकाय एवा छे तो पण रात्रीभोजन अनाचरणीय छे कारण के एने करवाथी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org