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मूल: अहिंसावतनी ज विराधना थाय छे. २३
एम छे माटे हे देवानुप्रियो मद्य, मांस अने रात्रीभोजन ए. जाणे. संसाररूप वृक्षना गंभीर मूल जेवां छे एम समजीने तमे ते त्रणेनो त्याग करो. २४
अथवा मूढोनी पेठे बेठा छो : काणावाला हाथमा रहेलं पाणी जेम सतत पडतुं रहे छे, नाश पामतुं रहे छे तेमज प्रतिक्षण
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पोतानुं जीवन पण नाश पामतुं रहे छे ए शुं तमे जोता नथी ? अथवा तमे ए जोतां छतां केम बेसी रह्या छो अथवा एने केम जोई रह्या छो ? २४
आ तो शुं छे ? पण संसारथी - संसाररूप जेलखानाथी विरक्त थयेला एवा लोको आजे पण विद्यमान छे जेओ राज्यने पण छोडी दईने प्रवज्यानो स्वीकार करे छे. २६
मुनिए आम कह्या पछी - उपदेश आप्या पछी संसारथी परम वैराग्यने धारण करतो एवो कनकचूड उभो थईने मुनिना चरणोमां पड्यो अने कहेवा लाग्यो - हे भगवान ! हुं मारा कुमारने मारी गादी उपर बेसाडीने आवुं पछी आपनी पासे प्रव्रज्या स्वीकारीने मारा पोताना जीवितने सफल करूं.
मुनि बोल्या-भवना फंदा तोडवानो अथवा तेनो अंत करवानो आज मार्ग छे. [पृ० ६१] एश्री तमारी जेवा महानुभावोए आम ज कर जोईए. आ वखते ए मुनिनो उपदेश सांभळीने कुमारने पण संवेग-धर्म प्रत्येनो उत्साह थयो तेथी मुनिने प्रणाम करीने ते कहेवा लाग्योहे भगवान ! मने पण जीवुं त्यां सुधीनो मद्य न पीवानो, मांस न
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