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________________ ६९ पेला युवान वाणियाए पण उतावळने लीधे चित्त स्थिर न होवाथी कोई जातनी तपास कर्या बिना अने खरी वातनो विचार कर्या विना ज तेना गळामां फूलनी माळा पहेरावी दीधी अने हाथमां कंकणो बांधीने-पहेरावीने विवाह करी लीधो. पृ०४३] आ वखते चारुदत्तनो पेलो मश्करो साथी खी खी करतो हसतो हसतो बोल्यो-भो ! भो ! महानुभाव ! पुरुष पुरुषने परणे एवो व्यवहार शुं तमारा नगरमां प्रचलित छे ? में ते आq क्यांय कोई पण रीते सांभल्युं नथी, जोयुं नथी अने मने तो आ एक आश्चर्य जेवू लागे छे. एम कहेतो ते मश्करो चारुदत्तनो साथी त्यांथी झपाटाबन्ध पलायन करी गयो. पेलो जुवान वाणियो तो आ सांभळीने भोंठो ज पडी गयो अने आ प्रमाणे विचारवा लाग्यो रे ! हताश हृदय ! तुं आ ज लागर्नु छे एटले आ जातनी तारी वंचना थाय तेने ज तुं योग्य छे. हे पापी मन ! कूडकपटनी भरेली एवी स्त्रीओमां तुं विश्वास राखे छे माटे तारी आवी ज वले थवी जोईए. १ तुं एटलं पण समजतुं नथी के आ स्त्रीओ विविध स्त्रीचरित्रो करनारी छे अने पोतानी चतुराइने लीधे सुरगुरु- बृहस्पतिने पण एकदम ठगी ले छे. २ तथा, ए स्त्रीओ कोई एकनी साथे स्नेहवाळां वचनो बोली बहु बोल बोल करे छे, बीजाने आनन्दपूर्वक आंखना मात्र चेनचाळा करी पोता तरफ खेचवो भूलती नथी. ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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