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________________ नमां रात्रे तो एक पळ पण रहेवा जेवू नथी अहीं तो पिशाचो प्रगट थाय छे, वैताळनां जुथो टोळे मळे छे, भयंकर फुफाडाना अवाजो उछळवा लागे छे, केटलाक तो अहीं छिद्र-श्वभ्र-कोतरमा एटले पोली जग्यामां पेसी जाय छे-ऊंडा उतरी जाय छे माटे तमे अहीं रहेवानो विचार मांडी वाळो. भीलनी आ वात सांभळी कुमार बोल्यो -जो एम छे तो तुं अहीं ज छूपो बेसी रहेजे अने मारी वाट जोतो रहेजे, हुं क्षणांतरमा ज आ प्रदेशने संक्षेपथी-उपर उपरथीजोईने आवी जाउं छु. भील बोल्यो-जेम तमने गमे ते करो पण जलदी ज पाछा आवी जq जोईए केमके एक पहोर रात चाली गई छे. भीलनी वात स्वीकारीने अर्थात 'एम' एम कहीने कुमार ए गहन वननी भीतरतां पेठो. त्यां वनमां बळी रहेली दिव्य औषधिनो प्रकाशं फेलायेलो होवाथी आम तेम जोतो ते क्याय दूरना भाग तरफ नीकळी गयो. हवे त्यां द्राक्षाना एक लतागृहमां-मंडपमांज्वाळाओथी सळगतो एक ज्वलन-अग्नि- कुंड तेणे जोयो. जोईने तेने विचार थयो के आ कुंडने कोईए कोई पण कारणने लीधे सळगाव्यो होवो जोईए. ए विचारतो ते ए कुंड तरफ जलदी दोडयो, ए कुमार केटलेक दूर गयो त्या बोलता अने रोषे भरायेला एक चेटकसुरनो अवाज एना सांभळवामां आव्यो, ए चेटकसुर त्या विद्या साधवा आवेला पण विद्यासाधकना विधिनियमोनो भंग करनार एवा कोइ साधकने ठपको देतो हतो. ए साधकने चेटकसुर ठपको केम-केवी रीते-देतो हतो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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