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[पृ० ५३] रे मूढ ! तारे मरवू छे के शुं पहेला तारी पोतानी बुद्धि वैभवना माहात्म्यनो विचार को बिना ज तुं खरेखर मन्त्रनी साधना करवा नीकळ्यो जणाय छे. १
मारी साधना करनारो एवो कोई साधक तें आ भूतळ उपर जोयेल छे अथवा सांभळेल छे के जे साधनमां चूकी गयो होय अने में तेने जीवतो मूक्यो होय-जीवतो राख्यो होय अर्थात् यमनी पेठे में मारी न नाख्यो होय. २ . भले बीजा देवोना मन्त्रनी साधना एटले मन्त्रोनुं स्मरण तुं तने कावे तेम करी शके छे पण मारा मन्त्रनी पण साधना जो तुं तने फावे तेम करीश तो नहीं ज चाले अने एम करीश तो तुं हवे पछी आ भूतळमां नक्की नहीं हो ए याद राख. ३ ___मननी शुद्धि करनारा एवा मोटा मोटा मुनिनाथो माटे पण हुं दुस्साध्य छं. मारी पासे बधांनां कूटकपट खुल्लां थई जाय छे एवो हुं चेटक देव छं. शुं तें मने एवो सांभळ्यो नथी ? ४
आ वात कहेता ए चेटक देवने सांभळीने कुमारे विचार कर्यो-खरेखर कोई महानुभावे साधनविधिमां चूक करेल जणाय छे तेथी चेटकदेव एने खुब ठपको दई तिरस्कार करी तेनो घात करवा तैयार थयो लागे छे. तो ए घात कराता महानुभावनुं मारे रक्षण कर जोईए एम विचार करीने ते जमणा हाथमां नीलमणि जेवी कांतिवाळी छरीने पकडतोक ते मार्गे-ज्यांथी अवाज आवतो हतो ते तरफ-दोड्यो. अने बराबर ते ज वखते जेनुं हनन-मृत्यु-थवानी अणी उपर छे ते पेलो महानुभाव चेटकदेवना चरणमां पडीने प्रार्थना
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