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करतो अने 'हे देवो ! हे दानवो ! मने बचाओ बचाओ' ए रीते करगरतो -बोलतो-कुमारे सांभळ्यो अने तेने-विद्याना साधक महानुभावने-ऊंचो करीने एक पत्थर उपर पछाडीने मारी नाख.. वानी तैयारी करतो चेटकदेव कुमारना जोवामां आव्यो. पछी तो कुमारने एम खबर पडी के 'शस्त्रो देवो उपर चाली शकत नथी' एटले ए शस्त्रने छोडी दईने चेटक देवने पगमां पडीने विनंति करवा लाग्यो-हे देव ! प्रसन्न थाओ प्रसन्न थाओ, कोपनो त्याग करो अने मारो जीव लईने पण आ साधकने बचावो, शुं विचारा आनो साथे तमारे कोप करवानो होय, भारे क्रोधे भरायेलो सिंह पण शियाळने मारतो नथी. तो तमे पण शुं आवं अधम माणस करे एवं काम करवाने लायक छो ? कुमारनी आ विनंति सांभळीने थोडो शांत थयेलो ए चेटकदेव बोलवा लाग्यो-हे कुमार ! तारी वातने टाळी शकतो नथी तो पण आ साधकना अपराधनी वात सांभळ. खरेखर आ माणस मारा मन्त्रनी आराधना करतां करतां पण सारी रीते वर्ततो न हतो. कुमार [पृ०५४] बोल्यो-एणे तमारो मोटो अपराध को छे तो पण ए माटे एटले एने बचाववा माटे मारा जीवननी किंमत चूकववा तैयार छु तो ए किंमत लईने तमे एने छुटो करी द्यो अने 'देवनुं दर्शन निष्फळ नथी थतुं' ए कहेवतने खोटी न पाडो. आ सांभळीने चेटक बोल्यो -हे सुतनु ! तुं निरपराध छे माटे तारो नाश करवानी शी जरूर छे ? खरी रीते तो आनो ज नाश करवो जोईए पण तारी महानुभावताने लीधे मारु हृदय पीगळी गयुं छे अने तेथी हुँ प्रसन्न थयो छु अने
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