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________________ ? 'ले आने छोडी दउं छु' एम बोलतो चेटक ते मन्त्रसाधकने जीवतो मूकीने अदृश्य थई गयो. हवे ए मन्त्रसाधक पण मरणना भयने लीघे बेभान थई गयो हतो, तेनी उपर मन्त्रसाधन सारु आणेला अने पासे पडेला उत्तम चन्दनना रसने छांटीने कुमार तेने भानमां आणवा प्रयास करवा लाग्यो, पछी बे घडी पछी मांड ते भानमां आव्यो अने 'पोते जीवतो छे' एम कल्पना करी - विचारी- धीरे धीरे आजु बाजु जोवा लाग्यो. एवामां क्षणांतर पछी कुमारे तेने क - हे भद्र ! हवे तुं निर्भय छे, तारे ऊचाट करवानी जरूर नथी, निश्चित था, जे तारो काळ हतो ते दूर चाल्यो गयो छे, हवे 'तुं कोण छे ?' ए अंगेनी खरी बात कहे, तारुं नाम शुं छे ! अने अहीं तुं क्यांथी आवेल छे ? अने सुखे सूतेला सिंहने खजवाळीने उकेरवा - जगाडवा जेवुं तथा: छेवटे मोत आपनारुं निवेडल आवुं मन्त्रसाधन तें शा माटे आरंभेल छे ? तथा ए मन्त्र साधनमां तारी भूल केमं थई ? ए पण कहे. 'तुं मने नवो अवतार--नयुं जीवन - आपनार छो' ए हरीते प्रेम: धारण करता ते साधके कुमारने कहां - हे सुंदर ! हुं कनकचूड नामनो विद्याधर लुं, गगनवल्लभ नामना नगरथी आ चेटकदेवनी साधना करवा अहीं आवेल छु, मन्त्र वारंवार गणतां गणतां हुँ. बराबर सावधान हतो छतां दैवयोगे केम करीने ए मन्त्रनो एक अक्षर भूली जवायो एनी मने खबर न रही. बस मात्र आटलो. ज मारो अपराध थतां आ देव गुस्से थई गयो अने मने पत्थर उपर पछाडवा सारु उपाडवामां आव्यो बराबर ए जं वखते भयभीताने लीधे बेबाकळो थयेलो हुं शरीरनी रक्षाना मन्त्राक्षरोने . : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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