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याद करवा लाग्यो, पछी शुं थयुंए हुजाणतो नथी, मात्र 'मारा जीव ननी किंमत लईने पण तमे आने छूटो करो-बचावो' ए तमे जे कहेलु एर्नु कांई थोडं थोडु मने स्मरण छे-भान छे. कुमार बोल्योहे भद्र ! तने बचावनार अमे कोण ? ए तो जीवोनां पोतपोतानां सुकृत अने दुष्कृत ज बधे स्थाने सुखदुःखमां कारणरूप बने छे. कनकचूड बोल्यो-[पृ०५५] खरी रीते तो तें तारो पोतानो जीव जोखममां नाखीने मारा जीवने बचावेल छे ए वात मने प्रत्यक्ष छे एटले अदृश्य एवां सुकृत अने दुष्कृत उपर कोण श्रद्धा राखे ? १
हजु ज्यां सुधी तारा जेवा परोपकारपरायण सत्पुरुषो नररत्नो छे-देखाय छे-त्यां सुधी 'आ पृथ्वी वसुंधरा-रत्नगर्भा छे' एम केम न कहेवाय ? अर्थात एवी कहेवत केम खोटी पड़ी शके ? २
खरेखर तो माझं वांछेल बर्बु ज सिद्ध थई गयुं के तारी जेवा दुर्लभ पुरुषनां मने दर्शन थयां. ३
जो के तारा सुन्दर चरित्र कडे ज तारं नाम अने गोत्र जगतमां प्रसिद्ध थई गयेल ज छे छतां पण विशेष जाणवा माटे मारं हृदय तरफडे छे. ४
पछी तेनो अभिप्राय जाणीने कुमार बोल्यो----मारा मोटा साथनांची एक लो ज हुं वसंतनी शोभा जोवा सारु आ तरफ घोडे चडीने आववा नीकल्यो हतो, पण घोडो विपरीत रीते शिक्षा पामेल होवाथी जेम जेम तेने ऊभो राखवा चोकडानी राश खेंचुं तेम तेम ते बधारे दोडे ए रीते आ अटवीमां आवी पडयो अने घोडो तो मरी गयो, आ बधी पोतानी वात कुमारे तेने कही संभळावी. विद्याधर
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