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व्यवहारने तो छोडीने गन्दो थयेलो छे. एनो तो विचार करतो नथी. शुं कोई पण माणस आ रीते गायना वाछडार्नु कदी पण अपमान करे खरो ? २
आ सांभळी गाय बोले छे के-हे पुत्र ! तुं जरा पण उतावळो था मा, कंई पण अधैर्य न कर. आ माणस धर्मविरुद्ध व्यवहार करी रह्यो छे एटले ए धर्मथी बहार छे. ३
__ पछी वाछडो बोल्यो-एम केम ? गाय बोली, हे पुत्र ! केटलं कहे ? आ अनार्य माणस ते छे जे पोतानी मातानी साथे पण सहवासने इच्छे छे ४.
माटे हे बच्चा ! आ बधुं ज तुं सहन कर, तुं धन्य छे के तेणे आटलं ज करीने तने छोडी दीधो. जे लोको पोताना धमनी मर्यादाने छोडी दे छे तेओ कयुं अकारज करता नथी ? ५
पृ०८४] ज्यां सुधी माणसमां लाज मर्यादा होय छे, त्यां सुधी ज तत्त्वनी रुचि टके छे, त्यां सुधी ज धर्म कर्मनो संबंध टके छे, त्यां सुधी ज लोकापवादनो भय लागे छे. ६
तमाम गुणोनी माता रूप लाजशरम-मर्यादा ज्यां सुधी नाश नथी पामी त्यां सुधी ज बधुं ठीकठीक चाले छे अने ज्यां ए लाज-- मर्यादा पग कोई पण रीते नाश पामो गई छे त्यां तमाम कुशळ कार्यनी चेष्टा पण नाश पामी जाय छे-टकती नथी. ७ ____ आ प्रमाणे पोताना वाछड़ानी सामे खास अभिप्राय साथे वचनोने बोलतो गायने जोईने उतावळे जता वेसियायणना मनमा एकदम शंका पड़ी अने ते विचारवा लाग्यो-अहो पहेलुं तो आ
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