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गुच्छाओथी ढंकायेला ऊँचा ऊँचा वृक्षा विडम्बना आपे छे अर्थात् एवा आकाशनी शोभा आ वृक्षोनी शोभा पासे फीकी लागे छे.
__ आ रीते गुणोने लीधे सुन्दर एवी वसंत ऋतु आवतां सूरसेन कुमार, ते ज वखते देशांतरमाथी आवेला वाणिआ लोकोए आणेला उत्तण घोडा उपर चढेलो, उजला कापडनो पोशाक पहेरीने माणसोने साथे लइने बननी शोभा जोवा नीकळ्यो. चालता चालता घोड़ो कुमारना ताबामां नहीं रह्यो, घोड़ाने विपरीत शिक्षा मळेली होवाथी जेम जेम कुमार तेने ऊभो राखवा चोकड़ानी राश खेंचे छे तेम तेम ते वधारे ने वधारे दोड़वा लागे छे अर्थात् थयेलो रोग जेम अपथ्यने लीधे वेगथी वधी जाय तेम आ घोड़ाने ऊंधी शिक्षा मळेली होवाथी तेने अटकाववानो उपाय करता ते वधारे दोड़वा लाग्यो, आम थवाथी सुरसेन कुमारना [पृ०५१]माणसो तेनी पाछल घणे दूर रही गया. जेम दुष्कृत कर्मोने लीधे प्राणी संसारनी महा अटवीमां पड़ी जाय तेम, आ घोड़ाए ते कुमारने एकलाने दूर मोटी अटवीमां आणीने नाख्यो अने घोड़ो खूब दोड़वाना थाकने लीधी थाकी गयो होवाथी मरी गयो. कुमारने पण खूब तरश लागवाथी तकलीफ थवाने लीधे त्यां अटवीमां आमतेम फरतो ते पाणी शोधवा लाग्यो. ए अटवी अतिगहन होवाथी क्यांय पण पाणी न मलवाने लीधे कुमार कोई वृक्षनी शीत छायामां बेठो अने विचार करवा लाग्यो-अहो ! कार्यनी परिणति-कर्मनो परिणति वांकी छे, अहो दुर्ललित दैव पोताने स्वच्छंदे ज चालनारुं छे, जेथी करीने दैव कोई रीते पण, नहीं चिंतवेल एवा कार्यने आ रीते बतावी रहेल छे. अथवा आq विचारोने शुं ? सत्पुरुषो तो पोताना सत्त्वना धन उपर
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