SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आण्यां. तेनी पथारी पाथरी दीधी, ते उपर रत्नावली आडी पडी, अने पछी बीजी शीत वस्तुओ एटले निर्मळ चन्दननो रस तथा कपूर वगैरे तेणीने शरीरे चोपड्या छतांय तेणीनो थोडो पण संताप ओछो न थयो. वळी-- तेणीना शरीर उपर जेम जेम ठंडा पदार्थो वडे शीत उपचार करवामां आवे छे तेम तेम तेणीना मनमा रहेलो कामरूपी अग्नि हजार गणो भभके छे. १ वळी चालवा लागे छे, के उभी थाय छे, पडखां फेरवे छे, नीसासा मूके छे अने घड़ीक कशुं ज बोलती नथी. थोड़ा पाणीमां रहेली माछली जेम तरफडे तेम राजानी पुत्री रत्नावली पण तरफडे छे. २ ___ आ जातनो तेणीना देहमा उठेलो दाह जोईने दासीओए तेणीने पूछचु-हे स्वामिनी ! आ रीते आजे तारुं शरीर खूब आकुलव्याकुल देखाय छे तेनुं शुं कारण छे ? शुं आ अपथ्य भोजननो विकार छे के कुपित पित्तनो दोष छे के बीजु कई कारण छे ? आप आ अंगे बराबर चोक्खी वात कहो जेथी वैद्यने आ विशे कही शकाय, उचित औषध वगेरनी सामग्री तैयार करी शकाय. देहमां थता रोगोनी शत्रुओनी जेम उपेक्षा न करवी जोईए. आ सांभळी रत्नावली बोली-मने तो आ अंगे कोई पण विशेष कारण हालमां ध्यानमा आवतुं नथी. दासीओ बोली-हे स्वामिनी ! ज्यारथी तमे पेली चित्रपट्टिका जोई छे त्यारथी ज तमारा शरीरनो अन्यथाभाव विपरीतता एटले शरीरना-केटलाक आवा हाल थया होय एम अमने तर्क थाय छे. बाकी खरेखरी बात तो तमे ज जाणी शको. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy