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आ सांभळीने रत्नावलीने खबर पडी गई के आ दासीओ ' मने आम केम थाय छे' एर्नु रहस्य समझी गई जणाय छे. आवो विकल्प करीने रत्नावलीए का-हे सखीओ ! तमे जाणो छो. पछी दासीओए विचार कर्यों के हजु ज्यां सुधी आने विरहनी भारे व्यथा नथी त्यां सुधीमां आनी आ परिस्थिति राजाने जणावी देवी जोईए, केमके विरहनी पीडा भारे विषम थवा मांडे त्यारे तो भारे विषम स्थिति पेदा थई जाय छे. एटले एवी वखते जीववानुं ज शंकामां आवी पडे छे. कामदेवना बाणोना घा भारे निष्ठुर होय छे त्यारे आ रत्नावलीनी शरीरश्री तो शिरीषना फूल जेवी कोमळ छे अर्थात् आनुं शरीर कामदेवना बाणनो घा सही शके एम नथी. खबर नथी छेवटे काई पण अजुगतुं पण थई जाय ? आम निश्चय करीने ए रत्नावलीने आ बधा समाचार राजा पासे पहोंचाड्या. [पृ०४८] तेणे पण रत्नावलीने पोतानी पासे बोलावी अने स्नेहथी कयु-हे पुत्री ! शूरसेन अथवा सुरसेन कुमार साथे तने परणाववा अमे ईच्छीए छीए. अमारो आ विचार शुं बराबर छ ? रत्नावली बोली-पिताश्री जाणे. आम वात थया पछी रत्नावलीनो अभिप्राय अनुकूळ जाणीने राजाए पोताना प्रधान पुरुषोने बोलावीने का-अरे तमे महासेन राजा पासे जाओ अने त्यांथी सुरसेन कुमारने अहीं तेडी लावो जेथी आपणी राजकुंवरीनो जल्दी विवाह करी शकाय. पछी ते प्रधान पुरुषो 'जेवी आपनी एटले देवनी आज्ञा' एम करीने त्यांथी नीकल्या अने महासेन राजाना
१ पहेलां (मूळ पार्नुः ३६)सुरसेण शब्द आवेल छे. अहीं सूरसेन पाठ छे. एटले सुरसेन अथवा शूरसेन एम बन्ने शब्दो समजवाना छे.
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