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जेमां तीव्र जनापवादरूप प्राणीनो प्रवाह छे अने तेथी ज जे न तरी शकाय एवो छे तथा जेमां दुर्गतिरूप मगर तथा मृत्यु रूप माछलां छे तथा जेनो मध्यभाग भारे भयंकर छे एवा आ संसार समुद्रनो स्वभाव बराबर समज्या पछी पण प्राणीओ पोताना घरमां सुखे केम रही शके छे ? १.
मोहना प्रभावने ली जेमनां विवेकनां नेत्रो ढंकाई गयां छे एवा ए प्राणीओ एटलं पण जाणता नथी के शुं आजे सुखं थवानुं छे के दुःख थवानुं छे के कांई उचित थवानुं छे के अनुचित थवानुं छे ! तथा आ संसार सेववा जेवो छे के बीजुं कांई सेववा जें छे ए पण तेओ जाणता नथी. २.
ते वखते जो पेली गाये मारा ष्टानी हकीकत न कही होत तो हुं अने पछी धगधगता अग्निमां पडवा
माता संबन्धी संभोगनी दुश्चेतेवुं अकार्य जरूर करी बेसत पण खरेखर शुद्धि न थात. ३. [१०८८] आवी बधी जे विविध विटंबणाओ मने ऊभी थई तेनुं मूळ एक कारण तो भोगतो अभिलाष छे एम हुं समजुं छं. माटे हवे वा घृणास्पद भोगना अभिलाषने पडतो मेलुं अने तमाम जातनी उपाधि वगरना धर्मनुं आचरण करुं. ४
एम निश्चय करीने पोताना पिता गोसंखने अने माताने बहु प्रकारे समजावीने ए वेसियायणे प्राणामा नामनी तापसी प्रव्रज्यानो स्वीकार कर्यो. प्राणामा प्रवज्या स्वीकार्या पछी ते विविध प्रकारना १ प्राणीमात्रने - जे सामुं मळे ते तमाम मनुष्य पशु वगेरेने प्रणाम - करता रहेवु ए प्राणामा प्रत्रज्यानो मुख्य सिद्धांत छे.
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