SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - पहेलां हु वस्त्र वगेरेनो परिग्रह राखतो हतो तेथी दीक्षाने योग्य न हतो पण हवे में वस्त्र वगेरे परिग्रहनो त्याग करी दीधो छे तेथी दीक्षाने योग्य थयो छु. २. तो हे त्रैलोक्यदिवाकर ! तुं मारो स्वीकार कर जेथी हुँ यावज्जीव तारो शिष्य थईने रहुं अने हवे तुंज मारो धर्मगुरु. ३ हे नाथ ! तारो मात्र थोडो पण विरह थतां तूटी जता हृदयने फरीवार तारा समागमनी इच्छाने लीधे में महाकष्टे धरी राखेल छे. ४. जाणु छु के वीतराग पुरुषमां करवामां आवता स्नेहनो निर्वाह थई शकतो नथी तो पण प्रेमने लीधे घेला थयेला चित्तने केमे करीने अटकावी शकवानी मारी शक्ति नथी. ५. वळी बीजं-- बाकीचें तो भले दूर रह्यं पण ताजा कमळ जेवी विकसित मनोहर आंखे मारा तरफ नजर करे तोय घणुं छे. आटलाथी पण हुँ समजीश के तें मारो स्वीकार करले छे. ६. ___ ए प्रमाणे सविनय सस्नेह ते कहेतो रह्यो त्यारे प्रेमविकार विनाना पण त्रण जगतना प्रभुए तेना वचननो स्वीकार कों. ७ ____ भगवान तेनी दुष्टशीलता जाणता ज हता अने भविष्यमां तेना द्वारा जे अनर्थ थवानो छे तेने पण जाणता हता छतां मोटा लोको-महानुभावो नमी पडेला लोको तरफ कदी पराङ्मुखताने केमे करीने राखी शकता नथी. ८. [पृ०११]एवी रीते शिष्य तरीके स्वीकारेल गोशालकनी साथे स्वामी सुवर्णखल नामना संनिवेश तरफ जता हता. वच्चे रस्तामा केटलाक गोवाळियाओ घणुं दूध लईने मोटी थाळीमां नवा अने आखा एटले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy