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उपर हजामत करावीने ते (गोशालक) वणाटशळामांथी नीकल्यो अने जलदी जलदी चालतो ते कोल्लाक संनिवेशमां पहोंच्यो. त्यां पहोंचतां ज तेणे बहार लोकोने परस्पर आवी वात करता सांभल्या के बहुल ब्राह्मण धन्य छे, पुण्यवंत छे, जन्मनुं अने जीवननुं फल तेणे मेळवेल छे के जेने घरे तथाप्रकारना मुनिने दान देवाथी सोनानी वृष्टि थई अने देवोए 'अहो दानम् अहो दानम् एवी घोषणा करी तथा जगतमां तेनी निर्मळ कीर्ति थई, वाह वाह थई. गोशालक पण लोको पासेथी आ वात सांभळीने राजी थयो अने तुष्ट थयो. एम विचारवा लाग्यो के, आ लोको जे महामुनिनी वात करी रह्या छे तेवा प्रकारना तो ते ज मारा धर्माचार्य महावीर छे.
मारा धर्माचार्य सिवाय बीजा कोई श्रमण के ब्राह्मणनी, आ प्रकारनी प्रभावशालिता नथी, ऋद्धि सत्कार के पराक्रम पण नथी, एम निश्चय करीने ते कोल्लाक संनिवेशनी बहार अने अन्दर तमाम स्थानोने बराबर ध्यानपूर्वक जूए छे, त्यां तेणे कायोत्सर्ग करीने ध्यानमां ऊभेला भगवानने ज जोया. ते भगवानने जोईने खूब राजी थयो, राजी थवाथी ज तेने रोमांच थई गयो अने मुख प्रसन्न थई गयुं जाणे के पोते चिन्तामणिरत्नने मेळव्यु होय तेम मानतो भगवानने त्रण प्रदक्षिणा करीने [ पृ०११ ] भगवानना चरणोमां नमी पडयो, कपालमा बन्ने हाथ जोडीने भगवानने एम कहेवा लाग्यो
तुं असाधारण गुणनो समुद्र छो अने त्रण जगतनो पूज्य छो अने निष्फळ थयेला मनुष्यनो सहारो छो माटे ज तने आ विनंति करुं छु?
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