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अने आ हकीकत सांभळी ते पोताना नगरमां गयो अने सूर्यप्रभ आचार्य पण बीजे स्थाने विहार करी गया.
हवे पेली कनकावतो लांबा काळ सुधी संसारमां आथडवाथी तेनुं भोगांतराय कर्म मोटे भागे भोगवाई गयुं तेथी घणुं ओकुं थई गयुं, एने लीधे ते कुसुमत्थल नामना नगरमा राजा जितशत्रुने त्यां एनी पुत्रीपणे जन्मी, योग्य वखत थतां ते पुत्रीनुं नाम रयणावली - रत्नावली पाड्युं. हवे ज्यारे ते भरजोबनमां आवी तो पण तेणीने पोताना पूर्वभवना प्रिय पतिमां गाढ स्नेह हतो तेथी ते एना सिवाय कोई पण सुंदर राजकुमारोनो पण अभिलाष नहीं करतां एम ने एम बखत वीतावे छे. हवे एकबार रत्नावलीना पिता राजा जितशत्रुए सांभल्युं के सुरसेन कुमार पण कोई पण स्त्रीने परणवा ईच्छतो नथी अने तमाम स्त्रीओथी पराङ्मुख रहे छे. ए रीते ए कुमार तमाम स्त्रीनो द्वेषी छे. आ तरफ पोतानी पुत्री पण रत्नावली तमाम पुरुषोनो द्वेष करनारी छे, एम समजी राजा जितशत्रुने एम लाग्युं के जो कदाच आ बे जणनो एटले पोतानी पुत्री अने पेला सुरसेन कुमार ए बेनो संयोग कराववानी विधिनी मरजी होय, एम विचारीने अने एम थयुं के आ बन्नेनां प्रतिरूपो चितरावीने ए प्रतिरूपोने एक बीजाने देखाऊं तो तेमना बन्नेना मननी खबर पडी जाय आम विचारीने राजा पोतान पुत्री रत्नावलीना रूप प्रमाणे तेनी एक चित्रपट्टिका तैयार करावी. ए चित्रपट्टिका दूतने सोंपी अने तेने राजाए कहाँ के - अरे ! तुं [पृ०४५] आ चित्रपट्टिका लईने महासेन राजा पासे जा अने कहे के राजा जितशत्रुए तमारा पुत्र सुरसेन
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