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१२१ ते आठ प्रकारनी पूजा आ प्रमाणे--
सर्वज्ञ भगवानना मस्तक उपर हरिचन्दन-उत्तमोत्तम चंदन अने धनसार-उत्तमकपर द्वारा बनावेला विशेष सुगन्धवाला वासक्षेप गंधो मूकवामां आवे तो भव्यलोको सुगंधीदेहवाळा थाय छे. ११
ताजी मालती कमल कदंब मल्लिका जुई वगेरनां पुष्योनी मालाओ द्वारा जिनपूजा करनारा शिवसुखने मेळवे छे. १२
[पृ० ७४] पाणीथी भरेक क्षेत्रमा चोखा नाखवामां आवे तो जरूर चोखा उगे ज तेम नखनी कांतिरूप पाणीथी भरेला एवा जिनपदरूप क्षेत्रमा अक्षतो चोखा मूकवामां आवे तो ते, दिव्यसुखरूप-सस्यनी संपत्तिने उगाडे एमां कोई आश्चर्य छे ? १३ ____ जगगुरुनी सामे मनुष्य धनसार-अगरनो धूप बळतो राखे तो धूपमांथी ऊछळता धूमाडाना गोटाना बाने पापने दूर करे छे अर्थात् धूमाडाना जे गोटा नीकळे छे तेनी ज पेठे जाणे पाप दूर थतुं होय एम समजवं. १४
जे लोको सुन्दर भक्तिपूर्वक जिनेन्द्रना मन्दिरमा दीपक दे छे-- मूके छे-करे छे ते लोको त्रण भुवननी अन्दर दीवा जेवा थाय छे. १५
त्रण लोकना प्रभुनी सामे जे लोको जल भरेला पूर्णपात्रो पूर्ण जलकलशो मूके छे ते लोको खरेखर पोतानां पूर्वे अर्जेला पापोने जलांजलि दे छे. १६
पाकी जवाने लीधे जेमांथी विशिष्ट गंध महेके छे तेवा उत्तम वृक्षोनां कळोवडे जेओ जिनपूजा करे छे तेओ मनवांछित फळोंने पामे छे. १७
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