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ज चोरना मोटा भयनी आशंका हती, हवे गोशालाने आम संताइने जोतो जोइने त्यांना गामलोकोने वहेम . पड्यो के आवडो आ, आ तरफ वारंवार जोया करे छे माटे जरूर ए कोई गुप्तचर होवो जोइये अथवा चोर होवो जोइये. आ वहेमथी प्रेरायला लोकोने एम पण थयु के कदाच कोई पण रोते आनी पासेथी आगलो चोरीनो माल मली जाय, एम विकल्प करीने ए लोकोए एने पकड्यो अने खूब खूब मार्यो, तेने पूछवामां आवतां ते कई बोल्यो नहीं. तेथी तेने कुटीने-मारीने छोडी मेल्यो. आ पछी ते भोंठो पडेलो गोशालक विचारवा लाग्यो के, भोजननी प्राप्ति तो दूर रही, शरीर ज बची गयु ए मोटें आश्चर्य छे. अहो अकारण दुर्जनोनो मेलाप थई गयो अथवा एथी शुं ? पण मारा प्रभुनो प्रभाव होय तो आ पापी लोकोना मंडप-मांडवो बळीने खाख थइ जाय-एटलं ज ते बोल्यो एटलामां भगवानना भक्त कोई वाणव्यतर देवे एमना मांडवाने बाळी नाल्यो. हवे भगवान कलंबुय नामना संनिवेश तरफ़ उतावला उतावला गया. प्रत्यंतिक एटले देशनी सीमामांगल्य कग्नारा अथवा अनार्य देशना निवासी एवा मेह अने कालहत्थी नामना बे भाइओनुं ते संनिवेशमा राज्य हतुं. ज्यारे भगवान अने गोशालक जता हता, बराबर ते ज वखते कालहत्थी मोटा लाव लश्करसाथे हाथमा विविध अस्त्र-शस्त्रो अने प्रहरणोने राखी चोर जे मार्गे गयो ते मार्गे एटले चोरनी शोधमां चोरनी पाठल जतो हतो. केटलुक चाल्यो त्यां एणे सामे आवता भगवानने अने गोशालकने जोया. तेमने जोइने तेणे पूठ्यु-तमे कोण छो ? स्वामी तो मान ज रह्या अने गोशालक पण
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