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________________ २० प्रवेश्या. तेमने नंदे जोया अने दहीं मिश्रित वासी चोखा वडे भगवानने प्रतिलाभ्या. गोशालो बीजा वाडामां गयो अने ऊँचो महेल जोईने उपनंदना ए महेलमां ते पेठो. गोशालाने भिक्षा माटे आवेलो जोई उपनंदे पोतानी दासीने कह्युं के आने भिक्षा आप अने दासीए गोशाळा माटे भिक्षामां आपवा वासी भात आण्यो. तेने नहीं लेवा इच्छतो गोशाळो उपनंदनो आ प्रमाणे फिटकार करवा लाग्यो गाम पासेथी लांच ल्यो छो, राजाने कोई जातनो कर पण भरता नथी अने विविध विलासो करता रहने निरंतर पापने आचरता रहो छो. १. [पृ०१३] तमारे आंगणे आवेला अमारी जेवा मुनिपुंगवोने भिक्षामां वासी भात देवरावता तमे केम शरमाता पण नथी ? २. आ सांभळीने रोषे भरायेल उपनंदे दासीने कर्तुं के, हे भद्रे ! आ श्रमणना माथा उपर ज आ भातने फक अथवा वेरी दे. दासीए खरेखर गोलशालकना माथा उपर भातने फेंक्या ज. आम थवाथी गोशालकनुं अभिमान झळकी ऊठ्युं, ते होठ करडवा लाग्यो भने एनां भवां ऊँचे चडी गयां, कपाळ लालचोळ थई गयं. बीजुं कांई पण नुकशान न करी शकतो होवाथी ते उपनंदना घरना बारणामां ऊभो रहीने कहेवा लाग्यो- मारा धर्माचार्यना तपनो प्रभाव होय वा तेना तेजनो प्रभाव होय तो आ अधम मनुष्यनुं भवन सळगी जाय हवे भगवान तरफ पक्षपात राखनारा अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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