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________________ आजुबाजु रहेनारा वाणत्यंतरोए अग्नि विकुर्यो एटले घरने आग लगाडी दीधी अने उपनंदनुं मंदिर बळीने राख थई गयु. ___आ पछी भगवान् चंपा नगरीमां गया अने तेओ त्यां त्रजु चोमासु रह्या. आ चोमासामां भगवाने एकसाथे बबे महिनाना उपवास करवानुं तपकर्म स्वीकार्यु तथा उत्कटुकआसन अने एवां बीजां अनेक आसनोमां रहीने ध्यान करवा लाग्या. बे मासना छेल्ला उपवास पूरा थतां अने तेनुं पारणुं बहार करीने भगवान गोशालनी साथे कालाय नामना संनिवेशमां गया । ए संनिवेशमां हालताचालता कीड़ीमकोड़ा वगेरे जीवात विनाना एकांतमां आवेला शून्य ऊजड घरमां भगवान रातने वखते प्रतिमाने स्वीकरीने ध्यान करे छे. गोशालो पण चपलताने लीधे शरीरना निरोधने सही नहीं शकतां त्यां ते घरना बारणानी पाछल छुपाईने बेसी रह्यो छे. एवामां सिंह नामनो गाममालिकनो पुत्र विद्युन्मती नामनी दासीनी साथे भोग भोगववाना विचारथी तेज ऊजड घरमा पेठो ज्यां भगवान ध्यानमां ऊभा हता. ए सिंहे मोटो घांटो काढीने पुज्यु के, अहो ! आ ऊजड घरमां कोई श्रमण, ब्राह्मण के कोई मुसाफर रह्यो होय तो झट कही दे जेथो अमे बीजे चाल्यां जइये । आ सांभळीने भगवान तो प्रतिमा स्वीकारीने ध्यानमा मौन हता तेथी न बोल्या पण पेला बीजा गोशालके पण लुच्चाईथी कशो जवाब न दौधो. कशो जवाब न मलवाथी ते बन्ने जणां ए शून्यधरमा पेठां अने निर्भयपणे सुरत बिनोदनी क्रीडा करी थोडी वारमा त्यांथी बहार नीकलवा लाग्यां. १. गाय दोहनार गोवाळ जमीनने पोतानी पूंठ वडे दाब्या विना जेम ऊभडक बेसे छे तेम बेसवाने 'उत्कटुक' आसन कहेवाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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