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________________ ३० नीकल्या छो पण बीजं काई जाणता लागता नथी अने धराई धराईने भरपेट मेळवेल भिक्षा खाईने रात आखी ऊंध्या ज करो छो. एटलं पण जाणता नथी के तमारा महानुभाव आचार्य काळधर्म पामी गया छे. अहो ! गुरु तरफ तमारो आ केवो स्नेह संबन्ध छे ? आम ते गोशालो जोर जोरथी कलबल करवा लाग्यो. एटले ते साधुओ जागी गया अने गोशालानां वचन सांभळीने शंकित थयेला ज्यां गुरु ध्यानमा रह्या हता ते जग्याए एकदम उतावळा उतावळा पहोंच्या अने जोयुं तो मालुम पड्यु के आचार्य काळ करी गया छे. आ वात जाणी पछी तो तेओ लांबा वखत सुधी ढीला पड़ी जई पोतानी धीरज खोई बेठा. केवी रीते ? तमे सारी रीते अमने साचव्या हता, तेमज भणाव्या हता अने अमारामां गुणो आवे एम तमे प्रयत्न पण कर्यो हतो तथा तमे अमने शिखामण पण खूब आपी हती. हाय ! हाय ! अमे केवा अकृतज्ञ छीए के तमारा काळधर्म वखते तमारी सेवा न करी शक्या. १ छेवटे अमे तमारी सेवा न करी शक्या तेथी अमे करेलां कठोर तपथी शुं वळे ? अथवा अमने शास्त्रबोध सारो छे एथी पण शुं वळे ? अने लांबा काळ सुधी अमे गुरुकुलवासमां रहीने सेवा करी ते पण निष्फळ गई एटले एवी सेवाथी पण शुं वळे ? २. असाधारण संयमरत्ननां रत्नरोहण समान एवा तथा प्रत्यक्ष धर्मना समूहरूप एवा पोतानाा काळधर्म पामेला गुरुने पण प्रमादने लीधे अमे न जाणी शक्या. ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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