SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोताना घर तरफ आवतो हतो. तेणे बहार चोकमां कायोत्सर्ग ध्याने रहेला ते आचार्यने जोया अने तेना मनमां 'आ चोर छे, आ चोर छे' एवो विकल्प ऊठवाथी पोताना बन्ने हाथ मजबूत रीते भेगा करीने तेमनुं गळू दाबी दीधुं, एम करतां ए मुनिनो श्वास रंधायो, आम अचानक दुःख आवी पडवा छतां तेमनुं चित्त शुभ ध्यानथी चलित न थयु अने शुभध्यानमा निरन्तर वर्तता हलवा कर्मी एवा ते आचार्यने अवधिज्ञान थयुं अने पछी तत्क्षण काळधर्म पामीने देवलोके गया. आ वखते पासे--आजुबाजु-रहेनारा देवोए फूलोनो वरसाद वरसाव्यो अने तेमनो मृत्युमहोत्सव कॉ. गोशाळो आ बधुं जोतो हतो तेणे साधुना उपाश्रय पासे विजळीना पुंजनी पेठे चमकता देहवाळा देवोने आकाशमांथी ऊतरता अने उपर चडता जोया एटले तेने एम लाग्यु के एमनो उपाश्रय बळी रह्यो छे. आम जणायाथी ते भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे भगवंत ! तमारा विरोधी एवा ते साधु . ओनो उपाश्रय बळी रह्यो छे. सिद्धार्थ कडं के, भद्र ! तुं एवी आशंका न कर, खरी वात एम छे के ते साधुओना आचार्य काळधर्मने पामीने देवलोकमां गया छे अने देवो तेमनो मृत्युमहोत्सव करे छे. आ वात सांभळी ते कुतूहलने लीधे ए स्थाने गयो, देवो पण पूजा करीने पोताने स्थाने पाछा फर्या. हवे ते जग्याए छांटेल सुगंधी पाणी अने फूलोनो पडेलो वरसाद जोइने गोशाळाने बमणो हर्ष थयो. पृ०१९] पछी ते उपाश्रयमां जईने स्वाध्याय ध्यान तथा सेवा करवानी प्रवृत्तिथी थाकीने भर ऊंघमां सूतेला ते शिष्योने उठाडीने कहेवा लाग्यो के, अरे ! दुष्ट शिष्यो ! तमे माथु मुंडावीने ज हीडी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy