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________________ २८ आ रीते उद्धताईथी बोलतो जाणीने का के, भला भाई जेवो तुं छे एवो ज तारो धर्माचार्थ हशे एम अमने लागे छे. [पृ०१८] पुत्रनां अनुचित आचरणो जोईने मातानां आचरणोनी कल्पना आवी जाय छे, कांतिनो गुण जोईने रतननी खाण सारी छे के नरसी तेनो ख्याल आवो जाय छे, ए ज रीते तने जोवाथी तारो गुरु केवो हशे तेनो भास आवी जाय छे. माटे हवे बधारे वर्णन करवानी जरूर नथी. पार्श्वनाथना शिष्योनी आ बात सांभळी गोशाळो रोषे भरायो अने बोल्यो के, मारा धर्मगु. रुना तपनो प्रभाव होय के तेजनो प्रभाव होय तो मारा धर्माचार्यने दूषित करनार एवा आपनो उपाश्रय बळी जाय. पछी पार्श्वनाथना शिष्योए कह्यु के,तारा वचनथी अमे बळी जवाना नथी. आ रीते भोंठो पडीने ते स्वामीनी पासे आव्यो अने बोल्यो के, हे भगवंत ! आजे में आरंभवाळा अने परिग्रहवाळा निग्रंथो जोया अने पछी (आगळ आवी गयेली वात बधी अहीं कहेवी) में आपर्नु नाम दईने तेमनो उपाश्रय बळवार्नु कां पण तेमनो उपाश्रय तो बळ्यो नहीं तो एनुं शुं कारण होई शके ? सिद्धार्थे का के, ए स्थविर साधुओ तो पार्श्वनाथना अपत्य शिष्यो छे, तारा वचनथी तेनो उपाश्रय बली शके नहीं. एवामां अहीं रात पड़ी गई. चारे दिशाओमां काजळ अने भमरा जेवां काळां अंधारां फेलाई गया. आ तरफ ते मुनिचंद्रसूरि ते दिवसे रात्रे चोकमा एकला ज कायोत्सर्गे ध्यान धरी रह्या हता. हवे पेलो कूषणय कुंभार पोतानी नातना भोजनमां खूब दारू पीने मस्त बन्यो हतो अने परवश पडेलो ते लयडियां खातो खातो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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