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________________ - १११ t चलित थता नथी त्यारे ते रात पूरी थता हारी गई - थाकी गई अने शांत थई, आ काम करवा माटे तेने पस्तावो थयो एटले भक्तिपूर्वक भगवानने पूजीने पोताने स्थाने चाली गई. f स्वामी पण त्यांथी नीकलीने भद्दिया नाम नगरीमां छठु: चोमासुं करवा सारु जई पहोंच्या. आ वखते छ महिना पछी गोशाळो पण स्वामीने मळ्यो भगवानने जोईने गोशाळाने हर्ष थयो अने भगवानना चरणकमळने नमीने ते भारे प्रमोद पाम्यो अने पूर्वनी - पहेलानी पेठे ज ते भगवाननी सेवा करवा लाग्यो. भगवान पण त्यां विविध जातना तपना अभिग्रहो - नियमो साथे चतुर्मासखमण-चार महिनाना उपवास पूरा करीने चोमासुं पूरुं थतां बहार पार करीने गोशाळानी साथै ऋतुबद्ध (विहार करवानी ऋतुना महिना) आठ महिना सुधी कोई प्रकारना उपसर्गो विना-कशीय कनडगत विना मगध देशमां फरवा लाग्या. Jain Education International 2 हवे सात चोमासुं करवा माटे आलहियया नामनी नगरीमां आव्या. भगवान त्यां पण चार महिनाना उपवास पूरा करने बहार पार करीने कंडाग नामना गाममां गया, त्यां मधुमथनकृष्णना ऊँचा शिखरवाळा भवनमां उचित एवा एक खूणामां कायोत्सर्ग करीने रह्या. गोशालो पण जीवनरक्षानी पेठे श्री जिननाथना माहात्म्यने धारण करतो पोताना पूर्वस्वभा मां आवी गयो, एटले अत्यार सुधी तेणे क्यांय अटकचाला के तोफान करवानुं मल्युं न हतुं तेथी ते लांबा काळ सुधी हाथपगने संकोचीने रहेलो अने एम रहेवाथी ते हेरान थई गयेलो, हवे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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