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मन्दिरमा गया, देवोने वन्दन कयु, उपदेश करवा सारु उचित स्थानमां बेठा अने त्यां आवेला भव्य सत्त्वोने-प्राणीओने धर्मनो उपदेश करवा लाग्या. पोरसी पूरी थया पछी बराबर ए वखते पूजानी सामग्री साथे वग्गुर सेठ त्यां आव्या, जिननी पूजा अने वन्दना करीने आचार्यनी पासे बेठा, शेठे आचार्यना चरणकमळने वन्दन कयु, आचार्ये आशीर्वाद आप्या अने सेठ जमीन उपर बेठा, गुरुए एटले आचार्य पण तेमनी-शेठनी योग्यता प्रमाणे धर्मनो उपदेशं आपवो शरू कर्यो केवी रीते ?
जिननाथनु मन्दिर चणाव, तेनी प्रतिमानुं त्रणे काल पूजन करवू अने दान देवानी प्रवृत्ति-ए त्रणे वानां पुण्योवडे मेळवी शकाय छे. १
जेओ पोतानी धन समृद्धिना वैभव द्वारा तमाम सुखरूप वृक्षोना बीज जेवू अने तीक्ष्ण दुःखवाळी दुर्गतिने बंध करवानां कपाटकमाड-बारणां जेईं जिनमंदिर चणावे छे, ते लोको धन्य छे. २
[पृ० ७३] जे लोको हिमालय पर्वतना शिखरना शृङ्गार जेवू सुन्दर जिनभवन करावे छे तेओ पोताना धारेला पदार्थने अनायासे ज शा माटे न मेळवे-साधे ? ३
सामान्य पण जिनघर कराववाथी जे पुण्यनो राशि मळे छे तेने कोण मापी शके ? तो पछी जे जिनघर जीर्ण थयेल छे तेनो विधि
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