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रोष करवामां आवतो नथी पण जेओ स्फुटवक्ता छे तेमना उपर ज रोष. करवामां आवे छे. २
गोशाळानी आ वातो सांभळीने जेमनी बुद्धि परिपक्व छे एवा लोकोए कह्यं के, आ देवायनो आ कोई पीठवाहक हशे के छत्रधारक हशे के सेवक हशे. अरे ! एनाथी शुं थवानुं छे एटले एना बोलवाथी आपणने कांई हरकत थवानी नथी माटे भले ए बोलबोल करतो. तमे सो मूंगा रहो अने पोतपोतानां कार्य तरफ सावधान रहो. जो एनी वातने सांभळी न शकता हो तो एक साथे बधां वाजां वगाडवा लागो. एम करवाथी एनो अवाज संभळाशे नहीं. ए पछी ए लोको बधां ज वाजां वगाडवा लाग्या. हवे सवार थतां, सूर्य ऊगतां अने जीवजन्तुओ प्रत्यक्ष जोई शकाय एवो वखत थतां स्वामी-भगवान पोताना ध्याननी समाप्ति करीने ते स्थानेथी सावत्थी-श्रावस्ती नगरी भणी गया, भने त्यां बहारना भागमा प्रतिमा स्वीकारीने रह्या. आ तरफ जमवानो वखत थतां गोशाल पूच्यु के, हे भगवान् ! तमे भिक्षा माटे जवाना छो? सिद्धार्थ जवाब आप्यो के, आजे अमारे उपवास छे. पछी फरी मोशाले भगवानने पूछचु-आजे हुं केवु नोजन करीटा ? सिद्धार्थे जवाब दीधो के, आजे तने माणसनुं मास खावानुं मळशे. गोशालो बोल्यो के, जेमां बीजा पण कोई प्राणीओ मांस न होय एवं ज भोजन आजे मारे खावानुं छे तो पछी जेमां माणस मांस होय एवा भोजननी तो शी वात ? एटले माणसनां मां पवाळु भोजन तो हुँ खावानो ज नथी. आम निश्चय करीने ते भिक्षा माटे बधे हाडवा-फरवा लाग्यो.
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