SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जमाड्या पछी ज तेने जवा दीधो. ए रीते खूब मार खाइने ते श्रीजिन भगवाननी पासे आव्यो. ११. आवीने उपालंभ आपवा साथे ते कहवा लाग्यो के नायकनो शुं आवो धर्म छे ? तमारा जोतां पण मने आ रीते कोई आवीने मारी जाय ? १२. ___ मारी रक्षा माटे तो खूब प्रयत्न करीने में सदाने माटे तमारो आशरो लीधेल छे. हवे तमे मारी रक्षा न करो तो खरेखर तमारी सेवा करवी निरर्थक ज छे. १३. हजो सुधी तो एम बनतुं आवेल छे के, मालिको-प्रभुलोको दोषवाला पण पोताना सेवकोनो तमाम रीते बचाव ज करता आव्या छे. तो पछी जे सेवको नीतिपरायण होय तेमनो तो बचाव जरूर करवो जोइए ज.१४. सिद्धार्थे तेने जवाब आप्यो के, हजु तो तें मार क्यां खाधो जछे ? अथवा तने मार क्या पडयो छे: हजी पण तारा मोंढाना दोषने लीधे एटले तारी बकबादीपणानी टेवने लीधे तने घणो घणो मार पडशे-एवं कोई दुःख नथी जे तने न मळे. १५. आ पछी स्वामी कुमार संनिवेशे गया. अने त्यां चंपकरमणीय नामना उद्यानमा बन्ने हाथ पग तरफ नीचा लंबाबीने कायोत्सर्ग करीने ध्यानमा रह्या. ते संनिवेशमा कुवणय नामनो कुंभार रहे छे. ए कुंभारनी पासे अपरिमित धन अने धान्यनी समृद्धि छे, तेने मद्य पीयूँ घणुंज प्रिय छे. तेनी दुकानमां पार्श्वजिनना शिष्य मुनिचंद नामना आचार्य निवास करे छे. ए आचार्य स्वसमय अने परसमयना अर्थों Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy