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उत्तम भक्ति साथै मुनिने वन्दन कर्यु, मुनिए राजाने आशीर्वाद आप्यो अने राजा गुरुना चरणकमळ पासे बेठो, साधुए जिन भगवाने प्ररूपेला धर्मनी कथा करो, घणा प्राणीओने धर्मनो बोध थयो, धर्मकथा पूरी थतां मुनिए राजाने पूछयुं तमे लांबा वखत पहेलां जे अभिग्रहो -- नियमो - स्वीकारेला ते आ--मद्य न पीत्रु, मांस न खावुं रात्रे भोजन न कर नियमो बराबर सचवाय छे ?
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राजा बोल्यो- सारी रीते सचवाय छे. पछी फरी सुनिए राजाने कथं - हवे तमे तमाम दोष रहित एवा जिननाथने देवबुद्धिथी स्वीकारो, सम्यक्त्व अंगीकार करो, कुवासनाद्वारा पेदा थयेल मिथ्यात्वनो सर्वथा त्याग करो. तमे एटलं करशो तोय खरीरीते परभवनुं हित कर्यु कहेवाशे राजा बोल्यो - एम एम - तमारूं एवं कथन बराबर छे, आजथी हुं जिनधर्मनो स्वीकार करूं कुं तमारा प्रभा बने लीचे में मिध्यात्वबुद्धिनो त्याग करी दीघेल छे. तमे मने तमाम प्रकारे कृतार्थ करी दीघो छे. ए रीते मुनिंनुं अभिनन्दन करीने राजा जेम आगो हतो तेम पाछो फरी गयो. कल्प (कल्प एटले मुनिने चोमासा सिवायना समयमां रहेवाना समयनो नियम ) पूरो थतां मुनि पण बीजा प्रदेश तरफ विहार करी गया. हवे राजाना शरीरमां तथाप्रकार- अमुक आवतां ते मरण पाभ्यो अने अविशुद्ध ने लीधे समकितने दोषवा कयूँ होवाथी ते मरण पामी यक्षपणे उत्पन्न थयो. आ प्रमाणे बिभेलकयक्षनी उत्पत्तिनी कथा छे वे महावीर जिनवर ते बिभेलकयक्षता उद्यानमांथी नोकळांने
प्रकारनी - वेदना
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अव्यवसाय - मनोवृत्ति
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