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तमे ऊजड अने एकांत जग्यामां उतरवार्नु राखो छो अने मान तथा अपमानमां सम चित्तवृत्तिवाळा छो. तमारा मनमां नायक तरीके तमारे शुं कर जोईए एवो कोई तमारी पासे धर्म पण देखातो नथी. १५
खरी रीते तो सेवक सुखी होय त्यारे नायक-मालिक-सुखी न होय अने सेवक दुःखी होय त्यारे नायक दुःखी न होय एम न बने एटले सेवकना सुखे सुखी अने दुःखे दुःखी होय एवो नायक होवो जोईए अने तमारे पण एम ज राखq जोईए. कोई पण सेवक सुखनी अभिलाषाने लीधे ज स्वामीनी सेवा करे छे पण ज्यां आवो स्वामी न होय तो शुं ते पण स्वामी कहेवाय खरो ? १६
हु लांबु जीवन इच्छु छु अने सुखनी आकांक्षावाळु मारूं मन छे. एटले हे देवार्य ! आम छे माटे हवेथी मारे तमारी सेवा करीने शुं काम छे ? १७
गोशालो आम बोल्यो त्यारे सिद्धार्थे तेने कह्यं के, तने फावे तेम तुं करी ले. अमारो तो व्यवहार जेम छे तेम ज रहेवानो छे. अहीं अमे तने वधारे शुं कहीए ? १८
आवी रीते परस्पर वातचीत थई अने स्वामी वैशालीने मार्गे पड्या. बीजो एटले गोशालक पण स्वामी पासेथी पाछो वळीने राजगृहना मार्गे चाल्यो. राजगृहनी वचमां तेने-गोशालकने भयंकर मोटुं जंगल आव्यु. ए जंगलमां हाथी, सिंह अथवा वांदरां, हरण, वरु, वाघ वगेरे घणां भयंकर प्राणीओ रहेतां हतां, आकाशने अडे एवा घणां ऊंचां लांबां वृक्षने लीधे ए जंगल वधुं बीहामणुं लागतुं हतुं.
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