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________________ जेने पगे पडे छे एवं नरपतिपणुं मळवू पण दुर्लभ छे. १६ पृ०३८] तेमां शास्त्रोना अर्थो समजवामां विचक्षण अने संसारथी अत्यंत विरक्त एवा कुशळ पुरुषो साथेनी थोडीवार माटेनी पण गोष्ठि एटले सोबत मळवी तो भारे दुर्लभ छे. १७ आ तमाम चीजो पुण्यना प्रकर्षने लीधे तने सांपडेल छे माटे हवे हिंसा, असत्य, चौर्य, परिग्रह अने अनाचारोथी विरमण करवा --अटकवा माटे एटले हिंसा वगैरेनो त्याग करवा माटे तारे सविशेष प्रयत्न करवो जोईए. १८ वळी, नीतिपरायण रहेवा माटे, उत्तम गुणो मेळववा माटे अने दुःखी जनोने जोईने तेमना तरफ करुणा राखवा माटे तथा धर्मथी जे कार्यो विरुद्ध छे तेमनो त्याग करवा सारु अने परलोकमां हित थाय एवो विचार करवा सारु तारे यत्न करवो जोईए. १९ वळी. क्षणभंगुर संसारना भावोनो विचार करवा माटे अने वैषयिक सुखो तरफ विराग करवा माटे तमारा जेवा पुरुषे पोताना मनने नित्य प्रवर्तावq जोईए. २० ___ आ प्रमाणे गुरुनो उपदेश सांभल्या पछी राजानुं अने नगरना लोकोनुं मन हर्षवाळु थयु अते तमे ‘जे उपदेश आपेल छे, ते बधो बराबर छे' एम स्वीकारीने ते बधा पोतपोताना घर तरफ वळ्या. २१ पण, जेनी हकीकत आगळ जणावेल छे एवा सूरसेन नामना पोताना पुत्रनी हकीकत विशे पूछवा माटे राजा थोडंक चाल्या पछी तरत ज पाछो वळ्यो. २२ पछी एकांतमां बेसी आचार्यने वंदन करीने राजा एम कहेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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