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मल्लिजिननाथनी प्रतिमा जोई. ते प्रतिमाने जोईने ते बन्नना मनमा घणो ज भाव थयो अने तेमनो एवो अभिप्राय बंधायो के खरेखर आ प्रतिमानी जेवी कलायुक्त रूपलक्ष्मी छे ते जोतां आ कोई सामान्य प्रतिमा लागती नथी माटे अमारुं मनोरथनुं वृक्ष हवे जरूर फळg जोइए, एम विचारीने तेओ बन्ने ए प्रतिमानो स्तुति आ प्रमाणे करखा लाग्या___ आजे भारे दुःखनी बेडी तूटी गई छे, अमारे माटे अत्यार सुधी उत्तम सुगति मन्दिरनां बारणां बोडायेला हता ते आजे उघडी गयां छे, अमारा करकमळमां संसारनां साररूप सुखो आजे ज आवी गयां छे. १.
दोषना प्रवाहनो नाश करनार एवा तमे अमारा जोवामा आव्या त्यारथी ज हे नाथ ! आजे ज त्रिभुवननी लक्ष्मीओए अमारा तरफ जोयु. २
नखोना निर्मळ रत्नोमांथी झबकारा मारता किरणोना समूह वडे आकाश छवाई गयुं छे एवा तमारा स्थानना मंडपनी वच्चे तीक्ष्ण दुःखोना अग्निथी शेकायला शरीरवाळा अमे अहह ! केवी रीते आवी गया ! ३
कर्मनां लेपने धोई नाखेल एवा तमारा मुख कमळने ज्यारथी जोयुं त्यारथी मारवाडना रणमां भूलो पड़ी गयेलो मुसाफर जेम रहेठाण पामे तेम हे देव ! अमे आजे खरेखर निवास पाम्या. ४
- आ रीते उत्तम भक्तिथी भरेली, सुश्लिष्ट, मनने आनन्द आपनारी वाणी बड़े हर्षथी विकसित थयेलां नेत्रो साथे ए बन्नेए स्तुति करीने ए मन्दिरनी जमीन उपर पोतार्नु कपाळ बारंवार अडाड्यु
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