Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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अध्ययन करते हुए शोध ग्रन्थ लिखा है । यह ग्रन्थ नवीन शैली को लिए हुए सभी योग परम्पराओं की एकात्मता का वर्णन करता है। .
___ योग के समीक्षात्मक अध्ययन के लिए हरिभद्रसूरि का स्थान सर्वोच्च है । योग को उच्च स्थिति पर ले जाने के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। आचार्य हरिभद्रर्ति के अनुसार सांसारिक दुःखों को समाप्त करने वाली सभी धार्मिक नैतिक शिक्षाएँ तथा आध्यात्मिक धाराएँ योग कहलाती हैं। योग के सही अभ्यास के लिए भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से चार भागों का अनुसरण किया जाता है-प्रेम, भक्ति, आगम ज्ञान ओर अनासक्त भाव से । योग भक्ति से सम्बन्ध जोड़ने का मूल तत्त्व है, उसकी प्राप्ति का साधन है।
आचार्य हरिभद्रसूरि की महत्वपूर्ण कृति ‘योग बिन्दु' पर डा० श्री सुव्रत मुनि जो ने सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत किया है। प्रथम अध्ययन में योग का महत्त्व दर्शाते हुए भारतीय धर्म दर्शन के सन्र्दभ में योग का समोक्षण किया है। द्वितीय अध्ययन में जैन योग के प्रणेता आचार्य हरिभद्रसूरि का समय. जोवनदर्शन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर सून्दर प्रकाश डाला है । तीसरे अध्ययन में योगबिंदु के आधार पर योग के अधिकारी और योग को पांच भूमियों का विशद विश्लेषण करते हुए योग साधना के विकास का वर्णन है। चतुर्थ अध्ययन में योग और ध्यान का सम्यक् विवेचन के साथ योग साधक के गुणस्थान ऊर्वारोहण का क्रम बतलाया गया है। अन्त में भारतीय दर्शन में आत्मा का स्वरूप और जैनदर्शन से तुलनात्मक अध्ययन करते हुए आत्मा, कर्म. लेश्या और ध्यान पर गहन चिन्तन प्रस्तुत किया है।
वर्तमान में हमारी प्राचीन साधना विधियाँ, जो पूर्व जैनाचार्यों के जीवन का अनुप्राण थी, प्राय: लुप्त सी होती जा रही हैं। पुनः प्राचीन ग्रन्थों का अवगाहन कर उन साधना विधिओं को जनजीवन में संचारित किया जाए, यह आवश्यक हो गया है। जैसे आचार्य भद्रबाह ने महाप्राण की साधना की थी तथा हरिभद्रस्रि और हेमचन्द्राचार्य के ग्रन्थों से भी उनके साधनामय जीवन के परिचय की झलक सम्प्राप्त होती है । मुनि श्री जी ने इस दिशा में एक अत्यन्त सार्थक पूर्ण प्रयास किया है जिससे प्रेरित होकर साधना इच्छुक, उत्साही मुनि जनों को इस ओर प्रयासरत रहना चाहिए।
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