Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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20 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
अभिधम्मत्थसंग्गहो की शैली सरल एवं सुललित है। इसका मुख्य विषय चित्त, चैतसिक, रूप और निर्वाण है जिनका वर्णन ग्रन्थ के प्रारम्भिक छः परिच्छेदों में मिलता है। बाद के तीन परिच्छेदों मे बौद्ध धर्म के कतिपय जटिल प्रश्नों का समाधान किया गया है। इन परिच्छेदों के नाम हैं-चित्तसंग्रह, चैतासिकसंग्रह, पण्णिकसंग्रह, वीथिसंग्रह, वीथिमुक्त संग्रह, रूपसंग्रह, समुच्चयसंग्रह, प्रत्ययसंग्रह तथा कर्म स्थानसंग्रह । इस तरह अभिधर्म के समस्त तत्त्वों, धर्मो को इनमें कहीं संक्षप में तो कहीं विस्तार से समझाया गया है। बौद्धदेशों में अभी भी ज्ञानाभ्यास का प्रारम्भ अभिधम्मत्थसंग्गहो से ही कराया जाता है। जैसे भारत में गीता घर-घर पढ़ी जाती है वैसे हो बर्मा में अभिधम्मत्थसंग्गहो का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यही सब इस कृति की महत्ता प्रगट करते हैं।
३. अभिधर्मकोश
अभिधर्मकोश हीनयान और महायान को जोड़ने वाला बौद्धों का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह वैभाषिकों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि कुछ एक के मत में यह सर्वास्तिवाद के सिद्धान्तों का प्रतिपादक प्रौढ़ ग्रन्थ है। इस अनुपम रचना के रचयिता विश्वख्याति प्राप्त विद्वान् आचार्य वसुबन्धु हैं। आप अपने समय में अपने विषय के सूक्ष्म ज्ञाता रहे हैं।
प्रारम्भ में आपका जीवन वैभाषिक बौद्धों की सेवा में बीता और बाद में आप अपने बड़े भाई असंग के प्रभाव से योगाचार बौद्धमत में में दीक्षित हो गए। आपका समय चौथी शताब्दी स्वीकार किया जाता है।
आपकी प्रमुख दो रचनाओं-अभिधर्मकोश एवं विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि ने आपको विद्वद जगत में सर्वाधिक यश दिलाया है। अभिधर्मकोश
और विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि का महत्त्व इससे और भी बढ़ जाता है कि बाद के अनेक आचार्यों ने इन पर भाष्य एवं टीकाएं लिखी हैं ।
अभिधर्मकोश पर स्वयं वसुबन्धु ने भाष्य भी लिखा है। इस तरह अभिधर्मकोशभाष्य आपकी प्रसिद्ध रचना है। अनन्तर छठी एवं ७वीं शदी के दो चीनी विद्वानों-परमार्थ और ह्वेनसांग ने इस पर पृथक्
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