Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
View full book text
________________
योग : ध्यान और उसके भेद
245
जब साधक सूक्ष्मकषाय को भी साधना के द्वारा क्षय कर देता है तब वह बारहवें गुणस्थान क्षीणकषाय में पहुंच जाता है। ज्योंहि साधक सम्पूर्ण कषाय को नष्ट कर चार घातिकर्मों को भी नष्ट कर देता है, तब वह उसी समय तेरहवें गुणस्थान सयोगीकेवली में पहुंच जाता है।
और संसारचक्र से सदा-सदा के लिए छूट जाता है। यही उसका निर्वाण व मुक्तिलाभ है।
१. गो०, जीवकाण्ड, गा० ६२ तथा कर्मग्रन्थ, भाग-२, पृ० ३६-४० २. गो०, जीवकाण्ड, गा० ६३ व ६४ तथा कर्मग्रन्थ, भाग-२, पु० ४०,
जनतत्त्वकलिका, पृ० २०२ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org