Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 348
________________ कृति एवं कृतिकार ...डॉ० सुव्रतमुनि जी का जीवन संघर्षभरा विस्मयजनक है और साथ ही शिक्षाप्रद भी। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' उवित आप में चरितार्थ हैं / 'अरक्षितं तिष्ठति दैव रक्षितम' कहावत भी यथार्थतः आपके जीवन में धटित होती है। मत्युसम उससर्गों तथा अनेक घटनाओं से ओतप्रोत आपका जीवन सदैव सुरक्षित रहा। अव्यक्त सत्ता का इसमें महान् सहयोग नकारा नहीं जा सकता। किसी महापुरुष ने सच ही कहा है 'जीवत्यनाथोऽपि वने विजितः। जीवनयात्रा में आगत समस्त बाधाओं को पार करते हुए आप सदा ही अग्रिम पथवर बढ़ते रहे। आपने 21 वर्ष की आयु में उत्तरभारतीय प्रवर्तक पूज्यवर गुरुवर्य भण्डारी पद्मचन्द्र जी म० के शिष्यरत्न परम श्रद्धय उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म० के पास 8-12-74 को जैन मुनि दीक्षा अंगीकार कर ली। बचपन से ही आपकी प्रभुभक्ति में रुचि रही है। ज्ञानार्जन करना आपका विशेष शौक है। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के ज्ञाता हैं। _सत्संग मुनि श्रीसुव्रत जी का प्रिय विषय रहा है। उनका कहना है कि 'सत्संग से मेरा विशेष लगाव रहा है। यह लगाव मुझे पैतृक दाय के रूप में मिला था। इससे जीवन की अनेक कठिनाइयों को पार करने की प्रेरणा शक्ति प्राप्त होती रही।। इसीलिए मुनि श्री ने पी.एच.डी उपाधि हेतु भी 'योगबिन्दु ग्रन्थरत्न को चुना और 'योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन' पर शोध प्रबन्ध लिख कर आपने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से डाक्ट्रट की उच्च उपाधि प्राप्त की। आप स्वभाव से विनम्र और विचारशील साधक है। जैन स्थानक वासी समाज में आप द्वितीय सन्त हैं जिन्होंने पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की है। इसके इलावा आपकी अनेक कविता-संग्रह लेख आदि पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।ate & Personal Jaby WWW Thelbre

Loading...

Page Navigation
1 ... 346 347 348