Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
नमः का चिन्तन किया जाता है ।।
इस मन्त्र के ध्यान के विषय में कहा है कि इस लोक में जिन योगियों ने आत्यन्ति की मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया है, उन सभी ने एक मात्र इसी महामन्त्र की आराधना की है ।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी मन्त्र हैं जिनका नित्य प्रति जप करने से मनोरोग शान्त होते हैं, कष्टों का निवारण होता है और कर्मों का आस्रव अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि यह मत्र पंच पदों तथा पंच परमेष्ठी की महिमा से ओतप्रोत है। षोडशाक्षर मन्त्र है--- अरिहत्त-सिद्धआयरिय-उवज्झाय-साह', छ: अक्षरों का जप है--- अरिहंत-सिद्ध, चार अक्षर वाला है-अरिहंत, दो अक्षरों वाला है-सिद्ध एवं एक अक्षर वाला है अ। इन मन्त्रा का जप पवित्र मन से करना चाहिए, क्योंकि समस्त कर्मों को दग्ध करने की शक्ति इन्हीं में समाविष्ट है ।।
इसी प्रकार ओं, ह्रां, ह्रीं, हू, हों, ह्रः असि आ उसा नमः इस पंचाक्षरमयी विद्या का जप करन से साधक संसार के कर्मबन्धन सदासदा के लिए तोड़ देता है और एकाग्र चित्त से मंगल, उत्तम, शरण पदों का जाप करता हुआ मोक्षलाभ करता है।'
१. दिग्दलेषु ततोऽन्येषु विदिकपात्रेष्वनुक्रमात् ।
सिद्धादिकं चतुष्क च दृष्टिबोधादिकं तथा ।। ज्ञाना० ३८.४० २. वही, ३८.४१ ३. गुरुपंचकनामोरा विद्या स्यात् षोडशाक्षरा।
जपन्शतद्वयं तस्याश्चतुर्थस्याप्नुयात्फलम् ॥ यो० शा० ८.३८ तथा--मिलाइए-स्मर पचपदोद्भूतां महाविद्यां जगन्नुताम् ।
___ गुरुपंचकनामोत्था षोडशाक्षरराजिताम् ॥ ज्ञानार्णव. ३८.४८ ४. दे० ज्ञानार्णव, ३८.५०-५३ ५. वही, ३८.५४ ६. पञ्चवर्णमयी पञ्चतत्वा वि योद्धृता श्रुतान् ।
अभ्यस्यमाना सततं भवक्लेशं निरस्यति ॥ यो० शा० ८.४१
तथा मिलाइए ज्ञानार्णव ३८.५५-५६ ७. यो० शा०, ८.४२ तथा तुलना कीजिए-ज्ञानार्णव, ३८.५७
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