Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 295
________________ 238 योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन सातव गणस्थान से ऊपर साधक को दो श्रेणियां पार करनी होती हैं वे हैं- उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी। जो जीव चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय करने के लिए उद्यत होता है, वह क्षपकश्रेणी पर आरोहण करता है। दोनों अवस्थाओं का काल अन्तमुहूर्त ही होता है। (८) निवृत्तिबादर उपशमाक क्षपक गुणस्थान : ___ अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क और दर्शनमोहत्रिक इन सात प्रकृतियों का उपशमन करने वाला जीव इस आठवें गुणस्थान में आकर अपनी अपूर्व विशुद्धि के द्वारा चारित्रमोहनीय की अवशिष्ट २१ प्रकृतियों का उपशम करते हुए उपयुक्त सात प्रकृतियों को निशेषतः क्षय करने में तत्पर होता है । इस गुणस्थान वाले समसमयवर्ती जीवों के परिणामों में भिन्नता रहती है और बादर संज्वलन कषायों का उदय रहता है। इसोसे इसे निवृत्तिबादर गुणस्थान कहते हैं। (९) अनिवृत्तिबादर उपशामक क्षपक गुणस्थान इसमें आने वाले एक समयवर्ती सभी जीवों के परिणाम एक से होते हैं, उनमें भिन्नता नहीं होती, अतः इसे अनिवृत्तिबादर गुणस्थान कहते हैं। इसका दूसरा नाम अनिवृत्तिबादर सम्पराय गुणस्थान भी है। बादर का अर्थ है-स्थल ओर संपराय का अथ है-कषाय। अथात् इसमें स्थूल कषाय का उदय होता है । इसमें दो श्रेणी उपशम और क्षपक है। उपशमश्रणी वाला जीव चारित्र-मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का उपशम और क्षपकश्रेणी वाला जीव उन सभी का क्षय करके दसवें गुणस्थान में प्रविष्ट हो जाता है। गोम्मट्टसार के लेखक के अनुसार अन्तमूहुर्तमात्र अनिवृत्तिकरण के काल में आदि, मध्य अथवा अन्त के एक समयवर्ती अनेक जीवों में जिस प्रकार शरीर की अवगाहना आदि बाह य कारणों से तथा ज्ञानावरण आदि कर्म को क्षयोपशम आदि अन्तरंग कारणों से परस्पर में भेद पाया जाता है, उसी प्रकार जिन परिणामों के निमित से परस्पर में भेद नहीं पाया जाता उनको अनिवृत्तिकरण कहते हैं। १. दे, कर्मग्रन्थ, भाग-२, पृ० २८; समवायांग, सूत्र १४ २. दे० कर्मग्रन्थ २, पृ० ३३ तथा समवायांग सूत्र १४ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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