Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योग : ध्यान और उसके भेद
(ख) योगबिन्दुगत योग के भेद
I
आचार्य हरिभद्रसूरि योगमार्ग के अनुभवी महान् साधक थे । इसी - लिए इन्होंने स्वानुभव के आधार पर योग के विषय में महत्त्वपूर्ण मौलिक चिन्तन प्रस्तुत किया है । उनके ग्रंथ योगबिन्दु में उन्होंने योग के सर्व प्रथम पांच भेद किए हैं-अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता और वृत्तिसंक्षय
अध्यात्मं भावना ध्यानं समता वृत्तिसंक्षयः । मोक्षेण योजनाद् योग एव श्रेष्ठो यथोत्तरम् ॥
ये योग हैं, कारण कि ये आत्मा को मोक्ष से जोड़ते हैं अथवा इनके माध्यम से आत्मा सर्वबन्धनों से मुक्त हो जाती है । ये पांचों उत्तरोत्तर उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ हैं अर्थात् अध्यात्म से भावना' भावना से ध्यान, ध्यान से समता तथा समता से वृत्तिसंक्षय क्रमशः एक से एक उच्चतर आध्यात्मिक विकास के सूचक हैं |
इसके अतिरिक्त आचार्य हरिभद्र ने एक अन्य प्रकार से भी योग के भेद किए हैं
तात्त्विको तात्त्विकश्चायं सानुबन्धस्तथापरः । सासवोऽनासक्तश्चेति संज्ञाभेदेन कीर्तितः ॥
अर्थात् तात्त्विक, अतात्त्विक, सानुबन्ध, निरनुबन्ध सास्रव और अनास्रव ये योग के छः भेद हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर हरिभद्र के अनुसार योग के ११ भेद हो जाते हैं। यहां पर इनमें अन्तिम छः का विश्लेषण करेंगे |
(१)
तात्त्विक योग
इसके अन्तर्गत साधक केवल निर्वाण को लक्ष्य में रखकर ही साधना में प्रवृत्त होता है ।" जब सावक सभी लौकिक कामनाओं को १. योगबिन्दु, श्लोक ३१
२.
विशेष के लिए देखिए --- प्रस्तुत प्रबन्ध का अध्याय
३. योगबिन्दु, श्लोक ३२
४.
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योगबिन्दु, श्लोक ३२ पर संस्कृत टीका
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