Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
View full book text
________________
234 गोगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन गया है जबकि गोम्मट्टसार में इसी की जीवसमास बतलाया गया है।
__ कर्म ग्रंथों में जीवस्थान और गुणस्थान को अलग-अलग बतलाया गया है । यद्यपि इनमें संज्ञा भेद होने पर भा कोई अर्थ भेद नहीं है फिर भो व्याख्याकारों के मतानुसार इनमें पर्याप्त अन्तर हैं। जीवस्थान
जीवों के स्थान अर्थात् जीवों के सूक्ष्म बादर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय आ द जोव के विभिन्न भेदों को जीवस्थान कहते हैं । इस दृष्टि से जीवस्थान तथा गुणस्थान में पर्याप्त अन्तर है किन्तु धवलाकार इनमें अभेद मानते हुए कहते हैं कि चौदह जीवस्थानों से यहां चौदह गुणस्थान ही अपेक्षित
गुणस्थानों की संख्या
प्रायः सभ ने गुणस्थानों की संख्या चौदह मानी है । वे हैं११) मिथ्यादृष्टि
(८) निवृत्तिबादर (२) सासादनदृष्टि
(६) अनिवृत्तिबादर (३) मिश्रदृष्टि
(१०) सूक्ष्मसाम्पराय (४) अविरतसम्यग्दृष्टि (११) उपशान्तमोहनीय (५) देशविरति सम्यग्दृष्टि (१२) क्षीणमोहनीय (६) प्रयत्त संयत
(१६) सयोगकेवली और (७) अप्रमत्तसंयत
(१४) अयोगकेवली . मिच्छो सासण मिस्सो अविरदसम्मो य देस विरदो य । विरदापमत्तइदरो अपुत्व अणियट्ठि सुहमो य ॥ उवसंतरवीगमोहो सजोगकेवलि जिणो अजोगीय । चउद्दस जीवसमासा कमेण सिद्धा य णादब्बा ।। गो० जीव काण्ड, गा० ६-१० इह सहमवायरे गदिवित्तिचउअसन्निसन्निपंचिदी।
अपजत्ता पज्जत्ता कमेण चउदस जियट्ठाणा ॥ कर्मग्रन्थ ४, गा० २ ३. दे, वही, ४, पृ० ६ ४. चतुर्दशानां जीवस्थानां चतुर्दशगुणस्थानामित्यर्थः । धवला १.१-२
निन्छादिट्ठी, सासाय गसम्मादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी, विरयाविरए, पमत्तसंजए, अप्पमत्तसंजए, निअविवायरे, अनिअदिवायरे सुहुमसंपराए, उवमामए, खीणमोहे, सजोगीकेवली, अयोगीकेवली । समवायांगसूत्र, समवाय १४
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org