Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योग : ध्यान और उसके भेद
219 रादेषादि एवं निन्दा-प्रशंमा से मुक्त है, जो समता धारी है, परोपकार में रत और जो प्रशस्त बुद्धि भी है । ४. शुक्लध्यान
शक्ल का अर्थ है-धवल, किन्तु यहां इसे विशद (निर्मल) के अर्थ में ग्रहण किया गया है। यह सर्वोत्तम ध्यान है। इसकी पूर्णता केवलज्ञान की प्राप्ति में होती है। शुक्लध्यान का मन हेतु कषायों का निश्शेषतः क्षय होना अथवा उपशम होना बतलाया गया है। ध्यानशतक में शक्लध्यान का स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया है कि 'जो निष्क्रिय, इन्द्रियातीत ध्यान, धारणा से रहित है और जिसमें चित्त अन्तर्मुख है, वह शक्लध्यान है।' शक्लध्यान की अवस्था प्रत्येक साधक को सहज उपलब्ध नहीं होती। इसको धारण करने का अधिकार उसे ही होता है, जो वज्रऋषभ नाराच संहनन और संस्थान वाला, ग्यारह अंग एव चौदह पूर्वो का ज्ञाता है, जिसका आचरण विशद्ध है, ऐसा वह मनि ही शुक्लध्यान के समस्त अंगों का धारक होता है. अर्थात् विचक्षण ज्ञान के पुजीभूत सत्त्व विशेष को ही शुक्लध्यान की अवस्था धारण करने का सुयोग मिलता है। शक्लध्यान के भेद ___ आगमों एवं योग ग्रंथों में शुक्लध्यान के चार भेद प्रतिपादित १. (क) कषायमलविश्लेषात्प्रशमाद्वा प्रसूयते ।
___ यतः पुंसामतस्तज्ज्ञैः शुक्ल मुक्तं निरूक्ति कम् ॥ ज्ञाना० ४२.६ (ख) गुचं क्लमयतीति शुक्लं, शोकं गलपयतीत्यर्थः । ध्यानशतक, श्लोक १
पर टीका २. निष्क्रिय करणातीतं ध्यानाधारणजितम् ।
अन्तम खं च यच्चित्त तच्छक्ल मिति पठ्यते ।। ज्ञानार्णव, ४२.४ ३. आदिसंहननोपेतः पूर्वज्ञः पुण्यचेष्टितः ।
चतुर्विधमपि ध्यानं स शुक्लं ध्या तुमर्हति ॥ वही, ४२.५
तथा योगशास्त्र, ११,२ ।। ४. सूक्ले झाणे चउविवहे उप्पडोआरे पण्णते, तं जहां-पूहत्तवियक्के सवियारी.
एगत्तवियक्केअवियारी, सुहुम किरिए, अणियट्ठी, समुच्छिन्नकिरिए अवयडिवाई स्थानांगसूत्र १२, पृ० ६७५ ज्ञेयं नानात्वश्र तविचारमैवयं श्रुताविचारं च । सूक्ष्मक्रियमुत्सन्न क्रियमिति भेदैश्चतुर्धा तत् ।। यो०शा० ११.५
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