Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु की विषय वस्तु
इस सन्दर्भ में महायानी विचारधारा को जान लेना भी आवश्यक है । महायान के अनुसार साधना की दश भूमिकाओं अथवा अवस्थाओं तथा पारमिताओं का उल्लेख किया गया है। वे भूमियाँ हैं:(१) प्रमुदिता, (२) विमला, (३) प्रभाकरी, (४) अचिष्मति, (५) सुदुर्जया, (६) अभिमुखी, (७) दूरंगमा, (८) अचला, (६) साधुमती एवं (१०) धर्ममेघा । (१) प्रमुदिता
इस स्थिति में साधक में जगत् के उद्धार के लिए बुद्धत्व प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षा जाग्रत होती है । इस स्थिति में उसे बोधिसत्त्व कहते हैं। वह चित्त में जैसी बोधि के लिए संकल्प करता है और प्रमुदित होता है । उसकी यही अवस्था प्रमुदिता कहलाती है। (२) विमला
इस स्थिति में दूसरे प्राणियों को उन्मार्ग से हटाने के लिए स्वयं साधक का ही प्राणातिपात विरमण रूप शील का आचरण करके दृष्टान्त उपस्थित करना होता है। यहां बोधिसत्त्व का चित्त परोपकारभावना से विमल रहता है।
(३) प्रभाकरी
इसके अन्तर्गत साधक के लिए आठ ध्यान (रूपारूपी ध्यान) और मैत्री आदि चार ब्रह्मविहार' की भावनाएं करने का विधान किया गया
प्रज्ञा पारमिता, भाग-१, पृ० ६५-१०० तथा
दे. बोधिसत्त्वभूमि २. वहब्राह्मम् । मैत्र्यादिभावनाया वृहत्फलत्वात् । अतो ब्राह्मविहारा इति ।
एतानि च मैत्र्यादीन्यप्रमाण सत्त्वावलम्बनत्वादप्रमाणान्युच्यन्ते । अर्थविनि०, पृ० १५५ तथा मिलाइए-~-- कस्मा पनेता मेत्तीकरुणामुदिता उपेक्खा ब्रह्मविहारा वि वुच्चन्ति? वुच्चते । सेठेन ताव निद्दोसभावेन चेत्थ ब्रह्मविहारता वेदितव्वा सत्तेसु सम्मापटिपत्तिभावेन हि सेट्ठा एते विहारा। यथा च ब्रह्मानो निद्दोसचित्ता--विहरन्ति इति सेठ्ठठेन निद्दोसभावेन च ब्रह्मविहारा ति बुच्चन्ति । विसु० ६.१०५-१०६
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