Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योग : ध्यान और उसके भेद मोक्ष की प्राप्ति होती है ।।
ज्ञातव्य है कि ध्यान के द्वारा शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के फलों की प्राप्ति सम्भव है अर्थात् इससे चिन्तामणिरत्न भी उपलब्ध होता है और खली के टुकड़े भी। इस प्रकार ध्यान सिद्धि की दृष्टि से बाह्य वृत्तियों के निरोध के साथ स्ववृत्ति तथा साम्यभाव का होना भी अनिवार्य हैं। साधक को आत्मदर्शन के अतिरिक्त दूसरे पदार्थ दिखाई ही नहीं देते। अगर साधक को सांसारिक चिन्ताओं का ध्यान अनायास हो भी जाए तो भी उन वृत्तियों को अन्तमुखी करके गुरु अथवा भगवान् का स्मरण करते हुए निर्जन स्थान में सर्वप्रकार की कामचेष्टाओं से रहित होकर सुखासन से बैठना चाहिएकारण कि इससे भी ध्यान में शुद्धता आती है।
ध्यान के हेतु
ध्यान के हेतुओं का उल्लेख भी प्राचीन ग्रंथों में मिलता है जो निम्नलिखित हैं-वैराग्य, तत्त्वविज्ञान, निर्ग्रन्थता, समचित्तता और परीषहजय । इसके अतिरिक्त असंगता, स्थिरचित्तता, उर्मिस्मय, सहनशीलता आदि का वर्णन भी इस प्रसंग में हुआ है।
१. मोक्ष कर्मक्षयादेव स चात्मज्ञानतो भवेत् ।
ध्यानं साध्यं मतं तच्च तद्ध्यानं हितमात्मनः ।। यो० शा०, ४.११३ २. इतश्चिन्तामणिदिव्य इतः पिण्याकस्वण्डकम् ।
ध्यानेन चेदुभ लभ्ये क्वाद्रियन्ताँ विवेकिनः ॥ इष्टोपदेश, २० ३. ततः स्ववृत्तित्वाद् बाह्यध्येय प्राधान्यापेक्षा निवत्तितामवति ।
तत्त्वार्थवार्तिक, पृ० ६२६ ४. तदा च परमै काग्रयाबहिरर्थेषु सत्स्वपि ।
अन्यत्र किंचनाऽभाति स्वमेवात्मनि पश्यतः ॥ तत्त्वानुशा०, श्लोक १७२
योगशतक, गा ५६.६० ६. वैराग्यतत्त्वविज्ञानं नम्रन्थ्यं समचित्तता।
परीषहजयश्चेति पंचैते ध्यानहेतवः ॥ वृहदद्रव्यसंह, पृ० २०७ पर उद्धृत । ७. दे० उपासकाध्ययनसूत्र, ३९.६३४
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