Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगविन्दु की विषय वस्तु
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आश्रवों के निरोध का उपाय बतलाते हुए महर्षि पतञ्जलि कहते हैं कि - अभ्यास और वैराग्य के द्वारा चित्त की वृत्तियां रुक जाती हैं ।"
इस प्रकार शुभाशुभ कर्माश्रव का विचार करके उनके विरोध के उपायों पर चिन्तन करना ही आश्रवभावना है ।
१. संवरभावना
संभावना के अन्तर्गत साधक कर्मास्रव को रोकने के उपायों पर चिन्तन एवं मनन करता हुआ उन्हें पूर्णरूप से निरुद्ध करने की कोशिश करता है । संवर का लक्षण बतलाते हुए आचार्य कहते हैं—आस्रवनिरोध संवरः - आस्रव का रुक जाना संवर है ।" यह संवर द्रव्यसंवर एवं भावसंवर के भेद से दो प्रकार का होता है । कर्मास्रव का रुकना द्रव्यसंवर कहा जाता है तो भव-भ्रमण की कारणभूत क्रियाओं का त्याग करना भाव-संवर है ।
आगमग्रन्थों में संवर को मिथ्यात्व कषाय आदि के भेद से ५ भेदों में विभक्त किया गया है। जबकि प्रश्नव्याकरणसूत्र और स्थानांगसूत्र में
१. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । योगदर्शन १.२
तथा मिला० - असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रह चलम् ॥
अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते ॥ गीता ६.३५
२. तत्त्वार्थसूत्र ६.१
३. सर्वास्रवनिरोधो यः संवरः स प्रकीर्तितः ।
द्रव्यभावविभेदेन स द्विधा भिद्यते पुनः ॥ ज्ञानार्णव सगं ३, संवरभावना श्लोक १ तथा मिला० -- सर्वेषामाश्रवाणां तु निरोधः संवरः स्मृतः ।
४.
स पुनभिद्यते द्वेधा द्रव्यभाव विभेदतः ।
यः कर्म पुद्गलादानच्छेदः स द्रव्यसंवरः ।
भवतु क्रियात्यागः स पुनर्भावः संवरः ॥ योगशा०, ४.७९-८०
आश्रवाणां निरोधी यः, संवरः स प्रकीर्तितः ।
सर्वतो देशतश्चेति द्विधा स तु विभज्यते ॥ प्रवचनसारोद्वार द्वार ६७,
संवरभावना श्लोक १
दे० प्रश्नव्याकरणसूत्र, संवर द्वार
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