Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु की विषय वस्तु
चित्तवृत्तियों का निरोध होता है । अतः संवेग का अर्थ वैराग्य करना अधिक समीचीन होगा ।"
उपायों का सम्बन्ध अभ्यास अथवा क्रियात्मक साधना से है । ऐसी अवस्था में संवेग का अर्थ वैराग्य करने से योगफल प्राप्ति के दोनों
तुओं की मन्दता- तीव्रता के आधार पर वर्गीकरण हो जाता हैं । यद्यपि इस आधार पर साधकों की नौ श्रेणियां बन जाती हैं तब भी सूत्रों में विभाजन की दृष्टि से मृदूपाय, मध्योपाय और अधिमात्रोपाय से तीन ही प्रमुख श्रेणियां बनती हैं ।
इन मृदुपाय, मध्योपाय और अधिमात्रोपाय अधिकारियों को ही व्याख्याकारों ने मन्द, मध्यम और उत्तम या आरुरुक्षु युंजान और योगारूढ़ शब्दों से अभिहित किया है । अतः मृदूपाय को मन्दाधिकारी या आरूरूक्षु, मध्योपाय को मध्यमाधिकारी या युंजान एवं अधिमात्रो - पाय को उत्तमाधिकारी या योगरूढ़ भी कहते हैं ।
इन तीन प्रकार के अधिकारियों के योग का वर्णन करते हुए सूत्रकार ने निर्देश किया है कि - उत्तमाधिकारी के लिए प्रथमपाद में अभ्यास, वैराग्य और ईश्वर प्रणिधान, मध्यम के लिए क्रिया - योग और मन्दाधिकारी के लिए अष्टांग योग अपेक्षित हैं । भावगणेश ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है |
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भोज और व्यास ने यद्यपि उत्तम के लिए समाहित चित्त और मध्यम तथा मन्द के लिए व्युत्थितचित्त का निर्देश किया है किन्तु उनकी मान्यता भी इससे भिन्न नहीं है ।' मन्द और मध्यम अधिकारियों के
१.
संवेग : वैराग्यम् । तत्त्ववैशारदी, २.२१
योगाधिकारिणास्त्रिविधा मन्दमध्यमोत्तमाः क्रमेणारूरूक्ष, युंजान, योगारुढरूपाः । पातञ्जलयोगसूत्र पर भावगणेश वृत्ति, २.१ समाहितचित्तस्योत्तमाधिकारिणो योगा रोहयोग्यस्याभ्यासवेराग्याभ्यामेव क्रियायोगनिरपेक्षाभ्याम् योगनिष्पत्तिः पूर्वपादे प्रतिपादिता । वक्ष्यमाणायम नियमादयः सर्वेऽपि क्रियायोगास्तथापि तेभ्यः समाहृत्य प्रकृष्टसाधनत्रयं मध्यमाधिकारिणं प्रत्युपदिष्टम् । पातञ्जलयोगसूत्र पर भावगणेश वृत्ति, २.१
यद्यपि
४. दे० पातञ्जलयोग एक अध्ययन, पृ० १५०
३.
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