Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के रचचिता : आचार्य हरिभद्रसूरि
इसके प्रत्येक अधिकार का नाम एवं विषय अलग-अलग है, जो निम्न प्रकार है - ( १ ) धर्म, (२) सद्धर्म देशना, (३) धर्म लक्षण, (४) धर्मच्छुलिंग, (५) लोकोत्तरतत्त्व प्राप्ति, (६) जिनमन्दिर, (७) जिनबिम्ब, (८) प्रतिष्ठाविधि ( ९ ) पूजास्वरूप, (१०) पूजाकल्प, (११) श्रुतज्ञान, (१२) दीक्षाधिकार, (१३) गुरुविनय, (१४) योगभेद, (१५) ध्येय स्वरूप और (१६) समरस |
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इस रचना का उद्देश्य ऐसे साधक का उद्धार करना है जो किसी प्रकार ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । उसे इसके अध्ययन एवं मनन से बोध प्राप्त हो सकता है !"
षोडशक के ऊपर यशोभद्रसूरि ने १५०० श्लोक प्रमाण संस्कृत में ही एक विवरण लिखा है और न्यायचार्य यशांविजयगणि ने इस पर १२०० श्लोक प्रमाण वाली विस्तृत व्याख्या भी लिखी है । इसके प्रथम षोडशकों का गुजराती भाषान्तर भी हुआ है जो कि सम्पादित एवं प्रकाशित है ।"
(२४) चैत्यवन्दनसूत्रवृत्ति
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चैत्य से यहां अभिप्राय 'जैन आराध्य वीतरागी तीर्थकर लिया गया है । इसी कारण इसे प्रणिपात, शक्रस्तव और नमोत्थुणं आदि नामों से भी जाना जाता है । प्रकृत ग्रन्थ विवृत्ति सहित प्राप्त होता हैं और जैसे कि इसका नाम चैत्यवन्दनसूत्रवृत्ति है भी । इसी को स्वयं आचार्य हरिभद्रसूरि ने वृत्ति के आधार पर ललितविस्तरा भी कहा है । इसकी प्रेरणा आचार्यश्री को सम्भवतः बौद्ध नववेपुल्यसूत्र ललितविस्तर से मिली है ।
यह मंगलसूत्र ग्रन्थ प्राकृत भाषा में निबद्ध है और इसकी विवृत्ति संस्कृत में है, जो ३३ पद्ममयीसूत्र श्रावकों के दैनिक साधना में सुपाठ्य है । मूलतः ग्रन्थ की विषय वस्तु वन्दना है फिर भी प्रणिपात, अहिंसा. कायोत्सर्ग, लोगस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धान्त, वैयावृत्य तथा प्रार्थनासूत्र
१. दे० षोडशक प्रकरण (आगमोद्वारक उपक्रम) ऋ० के० श्वे० संस्था प्रकाशन )
दे० वही (जैन पुस्तक प्रचारक संस्था प्रकाशन, १९४८ )
2.
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