Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु की विषय वस्तु
(१) अविकासावस्था
इसके अन्तर्गत साधक की सात अवस्थाओं का वर्णन हुआ है जैसे
कि—
(१) बीजजाग्रत
(२)
जाग्रत
(३) महाजाग्रत
(४)
जाग्रतस्वप्न
(५)
१.
स्वप्न
स्वप्नजाग्रत और
(६)
(७) सुषुप्ति ।"
(१) बीजजाग्रत
यह सृष्टि के आदि में चित्ति (चेतन्य) का नाम रहित और निर्मल चिन्तन का नाम है क्योंकि इसमें जाग्रत अवस्था का अनुभब बीजरूप से रहता है । इसी को बीजजाग्रत कहा जाता है ।
(२) जाग्रत
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परब्रह्म से तुरन्त उत्पन्न जीव का ज्ञान, जिसमें पूर्वकाल की कोई स्मृति नहीं होती जाग्रता अवस्था कहलाती है ।
(३) महाजाग्रत
पहले जन्मों में उदित और दृढ़ता को प्राप्त ज्ञान महाजाग्रत है । (४) जाग्रतस्वप्न
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यह ज्ञान भ्रम की कोटि में आता है क्योंकि इसका उदय कल्पना द्वारा जाग्रत दशा में होता है और इस ज्ञान के द्वारा जीव कल्पना को भी सत्य मान बैठता है । इसी का नाम जाग्रतस्वप्न भी है ।
(५) स्वप्न
महाजाग्रत अवस्था के भीतर निद्रावस्था में अनुभूत विषय के प्रति
तत्रारोपितमज्ञानं तस्य भूमीरिमाः श्रुणुः । बीजजाग्रत्तथा जाग्रन्महाजाग्रत्तथैव च ॥
जाग्रतस्त्रस्नस्तथास्वप्नः स्वप्नजाग्रतसुषुपतकम् ।
इतिसप्तविधो मोहः पुनरेव परस्परम् ॥ योगवासिष्ठ, उत्पत्तिप्रकरण,
११७, ११-१२
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