Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
भी लिखी है । यह ग्रन्थ योगधिकारों में विभक्त किया गया है। योग की प्रारम्भिक अवस्था से लेकर चरमावस्था तक का सांगोपांग वर्णन यहां मिलता हैं । प्रारम्भ में पातञ्जलयोगदर्शन के यम आदि अष्ट साधनों की तरह कर्ममलक्षय को दृष्टि में रखकर मित्रा, तारा, बला आदि आठ अंगों का वर्णन किया गया है जिस में प्रवर्तमान साधक अपने उद्देश्य की उपलब्धि कर लेता है । योगियों की इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्य - योग, गोत्रयोग कुलयोग, प्रवृत्तचक्रयोग और सिद्धयोग आदि में विभाजित कर योगदृष्टिसमुच्चय में उनकी उपयोगिता पर विस्तारपूर्वक चिन्तन किया गया है।
(२०) योगबिन्दु
यह आचार्य का योग विषयक अन्तिम और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें ५२७ श्लोक हैं । इसकी भाषा संस्कृत है । इसके आरम्भ में योग का अर्थ एवं महत्त्व बतलाया गया है । इसके बाद योगाधिकारी, अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता और वृत्तिसंक्षय का वर्णन करते हुए साधना के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है उसके साथ ही साधक की योग्यतानुसार उनका वर्गीकरण तथा योगसाधना के उपायों का प्रस्तुत कृति में विस्तृत अध्ययन किया गया है । आचार्य हरिभद्रसूरि की संस्कृत स्वोपज्ञ टीका भी इस पर उपलब्ध होती है । आचार्यप्रवर की यह अनुपम रचना ही शोधार्थी के लिए तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन के लिए उपादेय है ।
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