Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
View full book text
________________
80 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
(२) योगदृष्टिसमुच्चय (स्वोपज्ञ टीका युक्त) (३) योगशतक (प्राकृत) (४) योगविशिका (प्राकृत)
(५) षोडषप्रकरण (प्राकृत) आदि ग्रंथ विशेष हैं । (घ) ज्योतिष परक रचनाएं
(१) लग्न शुद्धि
(२) लग्न कुण्डलिया (प्राकृत) (ङ) स्तुति साहित्य
(१) वीरस्तव
(२) संसारदावानल स्तुति (च) आगमिक प्रकरण आचार एवं उपदेशात्मक रचनाएं:
(१) अष्टकप्रकरण (२) उपदेशपद (प्राकृत) (३) धर्मबिन्दु (४) पंचवस्तु (स्वोपज्ञ संस्कृत टीका सहित) प्राकृत (५) पंचाशक (प्राकृत) (६) बीसविशिकाएं (प्राकृत) (७) श्रावकधर्मविधिप्रकरण (प्राकृत) (८) सम्बोधप्रकरण (प्राकृत) (९) हिंसाष्टक (स्वोपज्ञ अवचूरि सहित)
इसके अतिरिक्त आचार्यवर ने व्याख्या एवं वृत्ति ग्रंथ भी लिखे हैं, वे तीन हैं
(१) पंचसुत्त व्याख्या (२) लघुक्षेत्रसमास या जम्बुक्षेत्रसमासवृत्ति (३) श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति
१. दे० समदर्शी आचार्य हरिभद्रसूरि, पृ० १०६ २. वही, पृ० १०८
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org