Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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भारतीय वाङ् मय में योगसाधना और योगबिन्दु
आध्यात्मिक विकास होता है ।
तत्त्वार्थ सूत्र के हवें अध्याय में चार ध्यानों का सम्यक् विवेचन किया गया है । बाद में इसी ग्रन्थ पर अनेक वृत्ति एव टीका ग्रन्थविशेष लिखे गए हैं जिनमें ध्यान का और सूक्ष्म चिन्तन किया गया है ।
(५) इष्टोपदेश
योग विषयक इस ग्रन्थ के लेखक आचार्य पूज्यपाद हैं । इनका समय विक्रम की पाँचवी छठी शदी है । इष्टोपदेश ५१ श्लोकों की छोटी-सी रचना है जो अपने में गहनभाव छिपाए हुए है । इस ग्रन्थ में योग के निरूपण के साथ-साथ साधक की उन भावनाओं का भी वर्णन किया गया है जिनके चिन्तन से वह अपनी चांचल्य वृत्तियों को त्यागकर अध्यात्ममार्ग में लीन हो जाता है तथा बाह्य व्यवहारों का निरोध कर परम आनन्द की प्राप्ति करता है ।
(६) समाधिशतक
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पूज्यपाद का योग से सम्बन्धित यह दूसरा ग्रंथ है। इसमें १०५ श्लोक हैं । इस ग्रंथ में आत्मा की अवस्थात्रय - बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा का विशद एवं विस्तृत वर्णन किया गया है। ध्यानसाधना के द्वारा प्रयत्न - पूर्वक मन को आत्मतत्त्व में नियोजित करने का उपदेश भी दिया गया है । यही इसकी महत्ता है ।
(७) परमात्मप्रकाश
इस ग्रंथ के रचयिता योगीन्दुदेव हैं । यह ग्रंथ अपभ्रंश भाषा में निबद्ध है । डा० हीरालाल जैन और डा० ए० एन० उपाध्ये के अनुसार इस ग्रंथ का समय अनुमानतः ईसा की छठी शताब्दी है । ग्रंथ में मानसिक दोषों के परिहार के उपाय एवं त्रिविध आत्मा के विषय में समुचित विवेचन किया गया है। योगीन्दुदेव की योग परक एक अन्य रचना योगसार भी उपलब्ध होती है ।
( 5 ) हरिभद्रसूरि की पञ्च रचनाएं
जैन परम्परा में सर्व प्रथम हरिभद्रसूरि ने ही योग शब्द का
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