Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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भारतीय वाङमय में योगसाधमा और योगबिन्दु
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नहीं जितना कि निवृत्ति प्रधान अन्य वैदिक दर्शन पाये जाते हैं।
निवृत्ति परक जिन आगम ग्रन्थों में जैनयोग की चर्चा मिलती है उनमें कतिपय प्रमुख आगम ग्रन्थ निम्नलिखित हैं :
(१) आचारांगसूत्र (२) सूत्रकृतांगसूत्र (३) भगवतीसूत्र या व्याख्याप्रज्ञप्ति (४) अनुयोगद्वारसूत्र (५) स्थानाङगसूत्र (६) समवायांगसूत्र (७) औपपातिकसूत्र (८) आवश्यकसूत्र
इनके अतिरिक्त और अन्य ग्रन्थ भी हैं जिनमें योग का विस्तृत वर्णन किया गया है।
आगमत्तोर कालीन जैन ग्रन्थ
आगमों ग्रन्थों में जो वस्तु-विवेचन सूत्र रूप में विभिन्न स्थलों में मिलता है उसे ही परवर्ती आचायों ने मनन कर अपनी कृतियों में विस्तार से वर्णन किया है। इसमें ध्यानयोग साधना के अंग विशेष कर अछूते नहीं रहे। आगमोत्तरकालीन योग से सम्बद्ध जो ग्रन्थ हमें उपलब्ध होते हैं वे निम्न प्रकार हैं
(१) ध्यानशतक
जैन योग विषय का प्राचीन ग्रन्थ ध्यान शतक है। इस ग्रन्थ के रचयिता जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण है। इनका समय ईसा की सातवीं शदी माना जाता है। इसमें १०० श्लोक है और इसकी भाषा प्राकृत है । ध्यान के विस्तृत वर्णन के साथ-साथ इसमें आसन, प्राणायाम और अनुप्रेक्षाओं का भी मनोज्ञ वर्णन किया गया है।
१. आचार्य हरिभद्र सूरि ने इस पर टीका लिखी है
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